जानिए... निर्जला एकादशी को क्यों कहते हैं भीमसेनी एकादशी?

ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को निर्जला, पांडव व भीमसेनी एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। इस एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक है, क्यूंकी इस एकादशी में जल ग्रहण नहीं किया जाता है इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते हैं। लेकिन इसे भीमसेनी या पांडव एकादशी क्यों कहते हैं? चलिये जानते हैं...

निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं?

इसका उत्तर भी निर्जला एकादशी की कथा में मिलता है, एक बार पांडवों में महाबली भीम ने पितामह वेदव्यास जी से कहा – "हे पितामह! मेरी माता कुंती, भ्राता युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और द्रौपदी। सभी मुझे एकादशी का व्रत करने को कहते हैं। लेकिन मुझसे बिना भोजन के रहा ही नहीं जाता। मैं भगवान की पूजा और दान तो कर सकता हूँ, पर भूखा रहना मेरे वश की बात नहीं है। कृपया मुझे ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे मैं केवल एक बार व्रत करके सारे एकादशियों का फल पा सकूं और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो।"

इस पर वेदव्यास जी ने भीमसेन को सबसे ज्यादा पुण्यदाई व्रत के बारे बताते हुये कहा – "हे भीम! ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'निर्जला एकादशी' कहा जाता है। यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ है। इस दिन केवल स्नान और आचमन के सिवा जल का सेवन भी वर्जित होता है। अगर कोई व्यक्ति इस दिन सूर्योदय से द्वादशी तक अन्न और जल का त्याग करके व्रत करता है, तो उसे साल की सभी एकादशियों का पुण्य फल एक साथ प्राप्त हो जाता है।"

व्यास जी ने आगे बताया – "इस व्रत के बारे में मुझे स्वयं विष्णु जी ने बताया है। उन्होने मुझे इस निर्जला व्रत की महिमा बताते हुये कहा था। इस दिन जो मनुष्य बिना जल ग्रहण किए उपवास रखता है। वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। अंतिम समय में उसके पास यमदूत नहीं आते हैं, बल्कि भगवान विष्णु के पार्षद पुष्पक विमान में आकर उसे स्वर्ग ले जाते हैं। इसलिए यह व्रत अत्यंत पुण्यदायक और श्रेष्ठ माना जाता है।"

इसलिए भीमसेन ने पितामह वेदव्यास की आज्ञा का पालन करते हुए इस कठिन व्रत को किया, और तभी से यह व्रत 'भीमसेनी एकादशी' या 'पांडव एकादशी' के नाम से भी प्रसिद्ध हो गया।

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