सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ हिन्दी अर्थ सहित (Complete Durga Saptashati Path)

सम्पूर्ण श्री दुर्गा सप्तशती पाठ हिन्दी अर्थ सहित, Complete Durga Saptashati Pathwith meaning in Hindi

Durga Saptashati Path in Hindi: वर्ष की चारों नवरात्रि और दुर्गा पूजा में भक्तजनों को श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य करना चाहिए। इन दिनों में देवी महात्म्य का पाठ अत्यंत फलदायक होता है।

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ (Durga Saptashati Path)

दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर, पूजा-स्थान की साफ सफाई और स्नानादि करके शुद्ध हो जाएँ। तत्पश्चात शुद्ध जल, पूजन सामग्री और श्री दुर्गा सप्तशती की पुस्तक को चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर विराजमान कर दें। आसन शुद्धि की क्रिया करके आसन ग्रहण करें। 

सर्वप्रथम पुस्तक को योनिमुद्रा दिखाते हुये, निम्न मंत्र बोलते हुये प्रणाम करें।

नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम्

फिर शिखा बाँधें और मस्तक पर भस्म, चन्दन अथवा रोली लगा लें। फिर निम्न मंत्र बोलते हुये तत्व शुद्धि के लिए चार बार आचमन करें। 

ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥
ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥

तत्पश्चात प्राणायाम करके गणेश आदि देवताओं एवं गुरुजनों को प्रणाम करें, फिर 'पवित्रेस्थो वैष्णव्यौ' इत्यादि मन्त्र से कुश की पवित्री धारण करके हाथ में लाल फूल, अक्षत और जल लेकर निम्नांकित रूप से संकल्प करें-

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः। ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम्‌ उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्‌यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्परं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास- धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च 'मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।' इत्याद्यारभ्य 'सावर्णिर्भविता मनुः' इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च किरष्ये/करिष्यामि।

संकल्प के पश्चात शापोद्धार करना चाहिए क्यूंकी यह ग्रंथ शापित है। 'ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं क्रां क्रीं चण्डिकादेव्यै शापनाशागुग्रहं कुरु कुरु स्वाहा।'  इस शापोद्धार मंत्र का पहले और बाद में सात-सात बार जप करें। 

इसके बाद उत्कीलन मन्त्र का जाप किया जाता है। इसका जप पाठ के पूर्व और अंत में इक्कीस-इक्कीस बार होता है। यह उत्कीलन मन्त्र इस प्रकार है- 'ॐ श्रीं क्लीं ह्रीं सप्तशति चण्डिके उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा।' 

इसके जप के पश्चात्‌ आदि और अन्त में सात-सात बार मृतसंजीवनी विद्या का जाप करना चाहिए, जो इस प्रकार है-'ॐ ह्रीं ह्रीं वं वं ऐं ऐं मृतसंजीवनि विद्ये मृतमुत्थापयोत्थापय क्रीं ह्रीं ह्रीं वं स्वाहा।'

मारीचकल्प के अनुसार सप्तशती-शापविमोचन का मन्त्र यह है- 'ॐ श्रीं श्रीं क्लीं हूं ॐ ऐं क्षोभय मोहय उत्कीलय उत्कीलय उत्कीलय ठं ठं।' (इस मंत्र का जप 108 बार केवल पाठ के पूर्व ही किया जाता है, अंत में इसका पाठ नहीं करना चाहिए।)

अथवा

रुद्रयामल महातन्त्र के अंतर्गत दुर्गाकल्प में कहे हुए चण्डिका शाप विमोचन मन्त्र का आरंभ में ही पाठ करना चाहिए। वे मन्त्र इस प्रकार हैं-

ॐ अस्य श्रीचण्डिकाया ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापविमोचनमन्त्रस्य वसिष्ठ-नारदसंवादसामवेदाधिपतिब्रह्माण ऋषयः सर्वैश्वर्यकारिणी श्रीदुर्गा देवता चरित्रत्रयं बीजं ह्री शक्तिः त्रिगुणात्मस्वरूपचण्डिकाशापविमुक्तौ मम संकल्पितकार्यसिद्ध्‌यर्थे जपे विनियोगः।

ॐ (ह्रीं) रीं रेतःस्वरूपिण्यै मधुकैटभमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१॥

ॐ श्रीं बुद्धिस्वरूपिण्यै महिषासुरसैन्यनाशिन्यै ब्रह्मवसिष्ठ विश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥२॥

ॐ रं रक्तस्वरूपिण्यै महिषासुरमर्दिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥३॥

ॐ क्षुं धुधास्वरूपिण्यै देववन्दितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥४॥

ॐ छां छायास्वरूपिण्यै दूतसंवादिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥५॥

ॐ शं शक्तिस्वरूपिण्यै धूम्रलोचनघातिन्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥६॥

ॐ तृं तृषास्वरूपिण्यै चण्डमुण्डवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्र शापाद् विमुक्ता भव॥७॥

ॐ क्षां क्षान्तिस्वरूपिण्यै रक्तबीजवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥८॥

ॐ जां जातिस्वरूपिण्यै निशुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥९॥

ॐ लं लज्जास्वरूपिण्यै शुम्भवधकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१०॥

ॐ शां शान्तिस्वरूपिण्यै देवस्तुत्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥११॥

ॐ श्रं श्रद्धास्वरूपिण्यै सकलफलदात्र्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१२॥

ॐ कां कान्तिस्वरूपिण्यै राजवरप्रदायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१३॥

ॐ मां मातृस्वरूपिण्यै अनर्गलमहिमसहितायै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१४॥

ॐ ह्रीं श्रीं दुं दुर्गायै सं सर्वैश्वर्यकारिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१५॥

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं नमः शिवायै अभेद्यकवचस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१६॥

ॐ क्रीं काल्यै कालि ह्रीं फट् स्वाहायै ऋग्वेदस्वरूपिण्यै ब्रह्मवसिष्ठविश्वामित्रशापाद् विमुक्ता भव॥१७॥

ॐ ऐं ह्री क्लीं महाकालीमहालक्ष्मी- महासरस्वतीस्वरूपिण्यै त्रिगुणात्मिकायै दुर्गादेव्यै नमः॥१८॥

इत्येवं हि महामन्त्रान्‌ पठित्वा परमेश्वर।
चण्डीपाठं दिवा रात्रौ कुर्यादेव न संशयः॥१९॥

एवं मन्त्रं न जानाति चण्डीपाठं करोति यः।
आत्मानं चैव दातारं क्षीणं कुर्यान्न संशयः॥२०॥

इस प्रकार किसी एक मंत्र से शापोद्धार करने के बाद अन्तर्मातृका बहिर्मातृका आदि न्यास करें, फिर श्रीदेवी का ध्यान करके रहस्य में बताए अनुसार नौ कोष्ठों वाले यन्त्र में महालक्ष्मी आदि का पूजन करें, इसके बाद छ: अंगों सहित दुर्गासप्तशती का पाठ आरंभ किया जाता है।

कवच, अर्गला, कीलक और तीनों रहस्य- को ही सप्तशती के छ: अंग माना गया है। इनके क्रम में भी मतभेद हैं। (चिदम्बरसंहिता में पहले अर्गला, फिर कीलक तथा अन्त में कवच पढ़ने का विधान है, किन्तु योगरत्नावली में पाठ का क्रम इससे भिन्न है। उसमें कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गई है।)

जिस प्रकार सब मंत्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार यहाँ भी पहले कवच रूप बीज का, फिर अर्गला रूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलक रूप कीलक का क्रमशः पाठ होना चाहिए। यहाँ पर इसी क्रम में सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हैं।

श्री दुर्गा सप्तशती सम्पूर्ण हिन्दी अर्थ सहित

यहाँ पर इस ग्रंथ के हर श्लोक को हिन्दी अर्थ सहित प्रस्तुत किया गया है। जिससे विभिन्न मंत्रो और अध्यायों को सरलता के साथ साथ महत्वपूर्ण संदेशों को भी गहराई से समझा जा सके। ताकि भक्त-जन माँ दुर्गा के प्रति भक्ति और समर्पण को समझें और उनकी कृपा को प्राप्त करें। यदि कोई व्यक्ति संस्कृत पढ़ने व उच्चारण करने में असमर्थ है, तो उसे हिन्दी में ही इसका पाठ करना चाहिए।

भाग 1

श्री दुर्गा सप्तशती

दुर्गा सप्तशती हिन्दुओं का एक धार्मिक ग्रन्थ है, जो मार्कण्डेय पुराण का भाग है। जिसमें देवी दुर्गा की महिषासुर नामक राक्षस के ऊपर विजय का वर्णन है। इसे देवीमाहात्म्यम् व चण्डी पाठ भी कहते हैं। इसमें कुल 700 श्लोक है, जिन्हे 13 अध्यायों में विभक्त किया गया है, तथा इन अध्यायों को तीन चरित्रों में भी विभाजित किया गया है। प्रथम, माध्यम और उत्तर चरित्र।

श्री दुर्गा सप्तशती, माँ दुर्गा के महात्म्य व उनके विभिन्न रूप की शक्तियों का विस्तारपूर्वक वर्णन है। इसमें माँ दुर्गा व उनके विभिन्न रूपों द्वारा देवों व संसार की रक्षा के लिए राक्षसों (मधु कैटभ, महिषासुर, शुम्भ निशुम्भ, धूम्रलोचन, रक्तबीज और चण्ड-मुण्ड इत्यादि) का दमन और भक्तों के ऊपर दया दृष्टि की कथाएँ वर्णित हैं।

भाग 2
  1. पहला अध्याय- मधु कैटभ वध
  2. दूसरा अध्याय- महिषासुर सेना का वध
  3. तीसरा अध्याय- महिषासुर का वध
  4. चौथा अध्याय- इंद्र देवता द्वारा देवी की स्तुति
  5. पांचवां अध्याय- अंबिका के रुप की प्रशंसा
  6. छठा अध्याय- धूम्रलोचन वध
  7. सातवां अध्याय- चंड और मुंड का वध
  8. आठवां अध्याय- रक्तबीज वध
  9. नवां अध्याय- निशुम्भ वध
  10. दसवां अध्याय- शुम्भ वध
  11. ग्यारहवां अध्याय- देवताओं द्वारा देवी की स्तुति
  12. बारहवां अध्याय- देवी चरित्रों के पाठ का माहात्म्य
  13. तेरहवां अध्याय- सुरथ और वैश्य को देवी का वरदान
भाग 3

नोट: दुर्गा सप्तशती के अध्यायों को तीन चरित्रों में वर्गीकृत किया गया है, प्रथम चरित्र (पहला अध्याय), मध्यम चरित्र (दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय) और उत्तम ‍चरित्र (पांचवें से तेरहवें अध्याय तक)। प्रथम चरित्र की देवी महाकाली, मध्यम चरित्र की देवी महालक्ष्मी और उत्तम ‍चरित्र की देवी महासरस्वती मानी गई है।

❀ नवरात्रि के दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ अत्यंत उत्तम व फलदायी होता है।
❀ चण्डी होम भी दुर्गा सप्तशती के 700 मंत्रों का उच्चारण करते हुये आहुति के साथ किया जाता है, जिससे माँ की कृपा से शत्रुओं पर विजय और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

दुर्गा सप्तशती पाठ के 5 सूत्र

श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के पूर्व ही पाठक को इन पाँच सूत्रों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए, तभी आपका पाठ पूर्ण होगा और मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।
  • पहला: "हस्ते पुस्तकं न धारयेत" यदि आप पूर्णतया स्वस्थ है।आप किसी भी प्रकार के दृष्टि दोष से पीड़ित नहीं हैं, तो आपको हाथों में पुस्तक पकड़कर यह पाठ नहीं करना चाहिए।
  • दूसरा: "अध्याय प्राप्य विरामेन्न तु मध्ये कदाचन्।" अध्याय के बीच में किसी भी प्रकार का विराम नहीं होना चाहिए। 
  • तीसरा: "कृते विरामे मध्ये तु अध्यायादि पठेत्पुन:।" यदि किसी भी कारणवश अध्याय के मध्य में विराम हो गया है, तो आपको पाठ की शुरुआत उसी अध्याय से करना चाहिए।
  • चौथा:   
    • "ग्रथार्थ बुधयमान:।" अर्थात जिस ग्रंथ को आप पढ़ रहें हैं, उसके बारे में आपको ज्ञान होना चाहिए। समझते हुये इस ग्रंथ का पाठ करना चाहिए। (दुर्गा सप्तशती में 535 श्लोक हैं, 108 अर्ध श्लोक हैं, 57 उवाच हैं। कुल मिलकर इनकी संख्या 700 होती है।)
    • "स्पष्टक्षरे नाति शीघ्रं नातिमंदं।" इस ग्रंथ के पाठ को ना ही अति शीघ्रता के साथ और ना ही अत्यंत मंद स्वर व गति के साथ पढ़ना चाहिए। दुर्गा सप्तशती का पाठ स्पष्ट अक्षरों में करना चाहिए।
    • "रसभावस्वर युक्तं वाचयेत्।" अत्यंत रस भाव से युक्त होकर इसका पाठ करना चाहिए।
  • पांचवां: पाठ के अन्त में इति, वध, अध्याय और समाप्त का प्रयोग नहीं करना चाहिए। (इति शब्द का प्रयोग करने से लक्ष्मी हरण, वध शब्द का प्रयोग करने से कुलविनाश, अध्याय शब्द के प्रयोग से प्राण हरण होता है।)

अध्याय की समाप्ति पर हांथ में जल लेकर यह मंत्र बोलें-

ऊं जय जय मार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके देवी महात्म्ये प्रथम: ऊं तत्सत्।
सत्या: सन्तु मम् कामा:, श्री जगदम्बार्पणमस्तु।

मंत्र के पश्चात इस जल को माता को समर्पित कर देना हैं।

दुर्गा सप्तशती पाठ के प्रकार

श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ तीन प्रकार से किया जाता है, १ - नित्य, २ - निमित्तिक, ३ - काम पाठ

  1. नित्य पाठ: वह पाठ जिसे प्रतिदिन किया जाता है।
  2. निमित्तिक पाठ: यह पाठ जो किसी निमित्त सिद्धि के लिए किया या करवाया जाता है।
  3. काम पाठ: सुमंगल की कामना के लिए किया जाने वाला पाठ काम्य पाठ कहलाता है।
यदि आप काम्य पाठ कर रहें है, तो संकल्प बद्ध होकर ही पाठ करें अन्यथा आपका पाठ फलीभूत नहीं होगा।

7 दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ कैसे करें?
समय की कमी के कारण श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ सात दिनों में क्रमशः एक, दो, एक, चार, दो, एक और दो अध्यायों का पाठ करें। दुर्गोपासना कल्प द्रुम में इसके बारे में लिखा है- "अथैकस्मिन्दिने सम्पूर्ण पाठकरणशक्तो पा १ ठो २यं १ द्वि ४ प्र २ का १ रः २ एवं क्रमेण सप्तभिर्दिनैरेकावृत्तिः एकैकं चरित्रमेंकैकस्मिन्दिने इति त्रिभिर्दिनैरेकः पाठ इति केरलाः क्वचित॥"

इस प्रकार एक सप्ताह में दुर्गा सप्तशती का पाठ निम्न प्रकार से करना चाहिए- 
  1. पहले दिन - 1 अध्याय (पहला)
  2. दूसरे दिन - 2 अध्याय (दूसरा और तीसरा)
  3. तीसरे दिन - 1 अध्याय (चौथा)
  4. चौथे दिन - 4 अध्याय (पाँचवाँ, छठवाँ, सातवाँ और आठवाँ)
  5. पांचवें दिन - 2 अध्याय (नौवाँ और दसवां)
  6. छठवें दिन - 1 अध्याय (ग्यारहवाँ)
  7. सातवें दिन - 2 अध्याय (बारहवाँ और तेरहवाँ)
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