चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा (Chaitra Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha)

चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी का माहात्म्य
एक बार कैलाश पर्वत पर माता पार्वती भगवान गणेश के साथ विराजमान थीं। उस समय बारह मासों की गणेश चतुर्थियों का प्रसंग चल रहा था। तब माता पार्वती ने कौतूहलवश अपने पुत्र गणेश से प्रश्न किया:
माता पार्वती – “हे पुत्र! चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को तुम्हारे किस स्वरूप की पूजा की जाती है? उसका विधान क्या है? कृपया मुझे बताओ।”
भगवान गणेश ने उत्तर दिया - हे मातेश्वरी! चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मेरे ‘भालचंद्र’ स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन व्रती को पूर्ण उपवास रखते हुए रात्रि में षोडशोपचार विधि से मेरा पूजन करना चाहिए। पूजन के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं पंचगव्य का पान करना चाहिए।
इस व्रत का स्मरण मात्र भी सभी विघ्नों का नाश करता है तथा साधक को सहज ही समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है। अब मैं आपको इस व्रत से जुड़ी एक पवित्र कथा सुनाने जा रहा हूँ। कृपया ध्यानपूर्वक श्रवण कीजिए।
चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा
सतयुग में मकरध्वज नामक एक परम धर्मनिष्ठ राजा थे। उनका राज्य समृद्ध, न्यायप्रिय और सुखमय था। प्रजा धर्मपरायण थी, सभी वर्ण अपने-अपने धर्म का पालन करते थे। चोरी, डकैती, रोग आदि से प्रजा पूर्णतः मुक्त थी। फिर भी राजा पुत्र सुख से वंचित थे।
राजा ने संतान प्राप्ति हेतु अनेक प्रयास किए। अंततः महर्षि याज्ञवल्क्य की कृपा से उन्हें एक सुंदर, तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र जन्म के बाद राजा ने राज्य का समस्त कार्यभार अपने मंत्री धर्मपाल को सौंप दिया और स्वयं पुत्र के पालन-पोषण में लीन हो गए।
मंत्री धर्मपाल भी धनी और प्रभावशाली हो गए। उनके अनेक पुत्र थे, जिनका विवाह विधिपूर्वक सम्पन्न हुआ। उनकी सबसे छोटी पुत्रवधू अत्यंत धर्मपरायण और भगवान गणेश की परम भक्त थी।
एक दिन जब चैत्र माह की संकष्टी चतुर्थी आई, तो उसने श्रद्धा से भगवान गणेश का व्रत किया। यह देखकर उसकी सास क्रोधित हो गई और बोली:
सासु माँ – “अरी! क्या तू मेरे पुत्र को वश में करने के लिए तंत्र-मंत्र कर रही है? मैं ये टोना-टोटका सहन नहीं करूंगी!”
पुत्रवधू ने विनम्रता से उत्तर दिया – “हे सासु माँ! मैं संकटनाशक भगवान गणेश का व्रत कर रही हूँ, जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।”
किन्तु सास का क्रोध बढ़ता गया। उसने अपने पुत्र से कहा – “तुम्हारी पत्नी मेरी आज्ञा नहीं मानती, इसे दंड दो!”
पति ने माँ की बात मानते हुए पत्नी को कष्ट पहुँचाया, फिर भी वह भक्तिन अपने व्रत से विचलित नहीं हुई। व्रत पूर्ण कर उसने करुण भाव से प्रार्थना की: पुत्रवधू – “हे विघ्नहर्ता! मेरी पीड़ा देखकर कृपा करें। मेरे सास-ससुर को आपकी महिमा का बोध हो। आप स्वयं उन्हें अपना चमत्कार दिखाइए।”
उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान गणेश प्रकट हुए और राजा के पुत्र (राजकुमार) को अदृश्य कर, मंत्री धर्मपाल के महल में छुपा दिया। राजकुमार के वस्त्र और आभूषण महल में मिल गए, परंतु वह स्वयं लापता था।
राजा चिंतित होकर पुत्र को खोजने लगे और मंत्री धर्मपाल के पास पहुँचे। मंत्री ने अनभिज्ञता जताई, लेकिन राजा का क्रोध बढ़ता गया। राजा ने कहा:
राजा – “धर्मपाल! मेरा पुत्र कहा है? यदि नहीं बताया तो तुम्हारा वंश नष्ट कर दूँगा!”
मंत्री डर गया और अपने परिवार से पूछताछ की। तब सबसे छोटी पुत्रवधू बोली: “हे पिताश्री! यह सब गणेशजी की लीला है। यदि आप गणेशजी की विधिपूर्वक पूजा करें, तो वह स्वयं राजकुमार को लौटा देंगे।”
मंत्री ने पुत्रवधू की बात मानी और नगर सहित राजा और सभी जनों ने विधिपूर्वक चैत्र संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत किया। भगवान गणेश प्रसन्न हुए और राजकुमार को सभी के सामने प्रकट कर दिया।
राजा आनंदित होकर बोले – “हे गणेश जी! आप महान हैं और धर्मपाल की छोटी पुत्रवधू भी धन्य है, जिसकी भक्ति ने मेरे पुत्र को यमलोक से लौटा लाया।”
भगवान गणेश ने कहा – “हे माता! इस व्रत से बढ़कर त्रिलोकी में कोई व्रत नहीं। इस व्रत की कथा युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से सुनी थी और इस व्रत के प्रभाव से उन्होंने पुनः अपना राज्य प्राप्त किया था।”