विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित (Vibhishan Krit Hanuman Stotra)

Vibhishan Krit Hanuman Stotra Lyrics with meaning

Vibhishan Krit Hanuman Stotra: विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र एक प्राचीन और अत्यंत शक्तिशाली स्तुति है, जिसे रावण के भाई विभीषण ने रचा था। इसका उल्लेख श्री सुदर्शन संहिता में मिलता है। इस स्तोत्र में हनुमान जी की असीम शक्ति, बुद्धि और भक्ति का वर्णन किया गया है।

यह स्तोत्र हनुमान जी को प्रसन्न करने और उनके दर्शन पाने का एक प्रभावशाली माध्यम माना जाता है। मान्यता है कि इसके ४१ दिनों तक अखंड जाप से सभी रोग, भय, बाधाएँ और परेशानियाँ दूर हो जाती हैं।

विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र

नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे
नमः श्रीराम भक्ताय शयामास्याय च ते नमः॥

नमो वानर वीराय सुग्रीवसख्यकारिणे
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे॥

सीताशोक विनाशाय राममुद्राधराय च
रावणान्त कुलचछेदकारिणे ते नमो नमः॥

मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नमः
अशोकवनविध्वंस कारिणे भयहारिणे॥

वायुपुत्राय वीराय आकाशोदरगामिने
वनपालशिरश् छेद लङ्काप्रसादभजिने॥

ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलाङ्गूलधारिणे
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः॥

अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्म पाश निवारिणे
लक्ष्मणाङग्महाशक्ति घात क्षतविनाशिने॥

रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नमः
ऋक्षवानरवीरौघप्राणदाय नमो नमः॥

परसैन्यबलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः
विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः॥

महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे
परप्रेरितमन्त्रणाम् यन्त्रणाम् स्तम्भकारिणे॥

पयःपाषाणतरणकारणाय नमो नमः
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे॥

नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे॥

प्रतिग्राम स्तिथतायाथ रक्षोभूतवधार्थीने
करालशैलशस्त्राय दुर्मशस्त्राय ते नमः॥

बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्ति धराय च
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः॥

कौपीनवासये तुभ्यं रामभक्तिरताय च
दक्षिणाशभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने॥

कृत्याक्षतव्यधाघ्नाय सर्वकळेशहराय च
स्वाभ्याज्ञापार्थसंग्राम संख्ये संजयधारिणे॥

भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने
किलकिलाबुबुकोच्चारघोर शब्दकराय च॥

सर्पागि्नव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे
सदा वनफलाहार संतृप्ताय विशेषतः॥

महार्णव शिलाबद्धसेतुबन्धाय ते नमः
वादे विवादे संग्रामे भये घोरे महावने॥

सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्यः स्तोत्र पाठाद भयं न हि
दिव्ये भूतभये व्याघौ विषे स्थावरजङ्गमे॥

राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च
जले सर्पे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे॥

पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठतः॥

सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवं
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥

विभीषण कृतं स्तोत्रं ताक्ष्येर्ण समुदीरितम्ये
 पठिष्यन्ति भक्तया वै सिद्धयस्तत्करे स्थिता:॥

॥ इति विभीषणकृत हनुमान स्तोत्रम ॥

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विभीषण कृत श्री हनुमत स्तोत्रम

हिन्दी अर्थ

विभीषण कृत हनुमान स्तोत्र अर्थ सहित

नमो हनुमते तुभ्यं नमो मारुतसूनवे।
नमः श्रीरामभक्ताय श्यामास्याय च ते नमः॥ १॥

हनुमान, आपको नमस्कार है। मरुत नन्दन, आपको प्रणाम है। श्रीराम भक्त, आपको अभिवादन है। आपके मुखका वर्ण श्याम है, आपको नमस्कार है॥ १॥

नमो वानरवीराय सुग्रीवसख्यकारिणे।
लङ्काविदाहनार्थाय हेलासागरतारिणे॥ २॥

आप सुग्रीवके साथ मैत्रीके संस्थापक और लंकाको भस्म कर देनेके अभिप्राय से खेल ही खेल में महासागर को लाँघ जाने वाले हैं, आप वानर वीर को प्रणाम है॥ २॥

सीताशोकविनाशाय राममुद्राधराय च।
रावणान्तकुलच्छेदकारिणे ते नमो नमः॥ ३॥

आप श्रीराम की मुद्रिका को धारण करने वाले, सीता जी के शोक के निवारक और रावण के कुल के संहारकर्ता हैं, आपको बारंबार अभिवादन है॥ ३॥

मेघनादमखध्वंसकारिणे ते नमो नमः।
अशोकवनविध्वंसकारिणे भयहारिणे॥ ४॥

आप अशोक वन को नष्ट भ्रष्ट कर देने वाले और मेघनाद के यज्ञ के विध्वंसकर्ता हैं, आप भयहारि को पुनः पुनः नमस्कार है॥ ४॥

वायुपुत्राय विराय आकाशोदरगामिने।
वनपालशिरच्छेदलङ्काप्रासादभञ्जिने॥ ५॥

ज्वलत्कनकवर्णाय दीर्घलांगूलधारिणे।
सौमित्रिजयदात्रे च रामदूताय ते नमः॥ ६॥

आप वायु के पुत्र, श्रेष्ठ वीर, आकाश के मध्य विचरण करने वाले और अशोक वन के रक्षकों का शिरच्छेदन करके लंका की अट्टालिकाओं को तोड़ फोड़ डालने वाले हैं। आपकी शरीर कान्ति प्रतत्प सुवर्ण की सी है, आपकी पूँछ लंबी है और आप सुमित्रा नन्दन लक्ष्मण के विजय प्रदाता हैं, श्रीराम-दूत को प्रणाम है॥ ५-६॥

अक्षस्य वधकर्त्रे च ब्रह्मपाशनिवारिणे।
लक्ष्मणाङ्गमहाशक्तिघातक्षतविनाशिने॥ ७॥

रक्षोघ्नाय रिपुघ्नाय भूतघ्नाय च ते नमः।
ऋक्षवानरविरौघप्राणदाय नमो नमः॥ ८॥

आप अक्षकुमार के वधकर्ता, ब्रह्मपाश के निवारक, लक्ष्मणजी के शरीर में महाशक्ति के आघात से उत्पन्न हुए घाव के विनाशक, राक्षस, शत्रु एवं भूतों के संहारकर्ता और रीछ एवं वानर विरों के समुदाय के लिये जीवन दाता हैं, आपको बारंबार अभिवादन है॥ ७-८॥

परसैन्यबलघ्नाय शस्त्रास्त्रघ्नाय ते नमः।
विषघ्नाय द्विषघ्नाय ज्वरघ्नाय च ते नमः॥ ९॥

आप शस्त्रास्त्र के विनाशक तथा शत्रुओं को सैन्य बल का मर्दन करने वाले हैं। आपको नमस्कार है। विष, शत्रु और ज्वार के नाशक आपको प्रणाम है॥ ९॥

महाभयरिपुघ्नाय भक्तत्राणैककारिणे।
परप्रेरितमन्त्राणां यन्त्राणां स्तम्भकारिणे॥ १०॥

आप महान् भयंकर शत्रुओं के संहारक, भक्तों के एकमात्र रक्षक, दुसरों द्वारा प्रेरित मन्त्र यन्त्रों को स्तम्भित कर देने वाले और समुद्र जल पर शिलाखण्डों के तैरने में कारण स्वरूप है, आपको पुनः पुनः अभिवादन है॥ १०॥

पयःपाषाणतरणकारणाय नमो नमः।
बालार्कमण्डलग्रासकारिणे भवतारिणे॥ ११॥

नखायुधाय भीमाय दन्तायुधधराय च।
रिपुमायाविनाशाय रामाज्ञालोकरक्षिणे॥ १२॥

प्रतिग्रामस्थितायाथ रक्षोभूतवधार्थिने।
करालशैलशस्त्राय द्रुमशस्त्राय ते नमः॥ १३॥

आप लोक सूर्य मण्डल के ग्रास कर्ता और भवसागर से तारने वाले हैं, आपका स्वरूप महान् भयंकर है, आप नख और दाँतों को ही आयुध रुप में धारण करते हैं तथा शत्रुओं की माया के विनाशक और श्री राम की आज्ञा से लोगों से पालनकर्ता हैं, राक्षसों एवं भूतों का वध करना ही आपका प्रयोजन है, प्रत्येक ग्राम में आप मूर्ति रुप में स्थित हैं, विशाल पर्वत ओर वृक्ष ही आपके शस्त्र हैं, आपको नमस्कार है॥ ११-१३॥

बालैकब्रह्मचर्याय रुद्रमूर्तिधराय च।
विहंगमाय सर्वाय वज्रदेहाय ते नमः॥ १४॥

आप एकमात्र बल ब्रह्मचारी, रुद्र रुप में अवतरित और आकाशचारी है, आपका शरीर वज्र के समान कठोर है, आप सर्वस्वरुप को प्रणाम है॥ १४॥

कौपीनवाससे तुभ्यं रामभक्तिरताय च।
दक्षिणाशाभास्कराय शतचन्द्रोदयात्मने॥ १५॥

कृत्याक्षतव्यथाघ्नाय सर्वक्लेशहराय च।
स्वाम्याज्ञापार्थसंग्रामसंख्ये संजयधारिणे॥ १६॥

भक्तान्तदिव्यवादेषु संग्रामे जयदायिने।
किल्किलाबुबुकोच्चारघोरशब्दकराय च॥ १७॥

सर्पाग्निव्याधिसंस्तम्भकारिणे वनचारिणे।
सदा वनफलाहारसंतृप्ताय विशेषतः॥ १८॥

कौपीन ही आपका वस्त्र है, आप निरन्तर श्रीराम भक्ति में निरत रहते हैं, दक्षिण दिशा को प्रकाशित करने के लिये आप सूर्य सदृश है, सैंकड़ो चन्द्रोदय की सी आपकी शरीर कान्ति है, आप कृत्या द्वारा किये गये आघात की व्यथा के नाशक, सम्पूर्ण कष्टों के निवारक, स्वामी की आज्ञा से पृथा पुत्र अर्जुन के संग्राम में मैत्री भाव के संस्थापक, विजयशाली, भक्तों के अन्तिम दिव्य वाद विवाद तथा संग्राम में विजय प्रदाता, किलकिला एवं बुबुक के उच्चारण पूर्वक भीषण शब्द करने वाले, सर्प, अग्नि और व्याधि के स्तम्भक, वनचारी, सदा जंगली फलों के आहार से विशेष रुप से संतुष्ट और महासागर पर शिलाखण्डों द्वारा सेतु के निर्माण कर्ता है, आपको नमस्कार है॥ १५-१८॥

महार्णवशिलाबद्धसेतु बन्धाय ते नमः।
वादे विवादे संग्रामे भये घोरे महावने॥ १९॥

इस स्तोत्र का पाठ करने से वाद विवाद, संग्राम, घोर भय एवं महावन में सिंह व्याघ्र आदि हिंसक जन्तुओं तथा चोरों से भय नहीं प्राप्य होता॥ ११॥

सिंहव्याघ्रादिचौरेभ्यः स्तोत्रपाठाद् भयं न हि।
दिव्ये भूतभये व्याधौ विषे स्थावरजङ्गमे॥ २०॥

राजशस्त्रभये चोग्रे तथा ग्रहभयेषु च।
जले सर्वे महावृष्टौ दुर्भिक्षे प्राणसम्प्लवे॥ २१॥

पठेत् स्तोत्रं प्रमुच्येत भयेभ्यः सर्वतो नरः।
तस्य क्वापि भयं नास्ति हनुमत्स्तवपाठतः॥ २२॥

यदि मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करे तो वह दैविक तथा भौतिक भय, व्याधि, स्थावर जंगम सम्बन्धी विष, राजा का भयंकर शस्त्र भय, ग्रहों का भय, जल, सर्प, महावृष्टि, दुर्भिक्ष तथा प्राण संकट आदि सभी प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है। इस हनुमत्स्तोत्र के पाठ से उसे कहीं भी भय की प्राप्ति नहीं होती॥ २०-२२॥

सर्वदा वै त्रिकालं च पठनीयमिदं स्तवम्।
सर्वान् कामानवाप्नोति नात्र कार्या विचारणा॥ २३॥

नित्य प्रति तीनों समय इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। ऐसा करने से सम्पूर्ण कामनाओं की प्राप्ति हो जाती है। इस विषय में अन्यथा विचार करने की आवश्यकता नहीं है॥ २३॥

विभीषणकृतं स्तोत्रं तार्क्ष्येण समुदीरितम्।
ये पठिष्यन्ति भक्त्या वै सिद्धयस्तत्करे स्थिताः॥ २४॥

विभीषण द्वारा किये गये इस स्तोत्र का गरुड ने सम्यक् प्रकार से पाठ किया था। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इसका पाठ करेंगे, समस्त सिद्धियाँ उनके करतल गत हो जायँगी॥ २४॥

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