श्री गणेश अथर्वशीर्ष स्तोत्र पाठ हिंदी (Shri Ganesh Atharvashirsha Path)

गणेश जी को विघ्नहर्ता और मंगलकर्ता भी कहा जाता है, इसलिए भगवान गणेश की कृपा से व्यक्ति का जीवन बाधा रहित और मंगलमय रहता है। इसलिए गणेश जी के बहुत से पूजा-पाठ किए जाते हैं। इन्हीं पाठ में श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ बहुत ही मंगलकारी और महत्वपूर्ण माना जाता है। विशेषतः भक्तजन इसका पाठ बुधवार, संकष्टी चतुर्थी और गणेश चतुर्थी के दिन करते हैं।

Shri Ganesh Atharvashirsha Path in Hindi

श्री गणपति अथर्वशीर्ष

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्‍ँसस्तनूभिः।
व्यशेम देवहितं यदायूः।

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
ॐ नमस्ते गणपतये॥१॥

त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्॥२॥

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि॥३॥

अव त्वं माम्। अव वक्तारम्।
अव श्रोतारम्। अव दातारम्।
अव धातारम्। अवानूचानमव शिष्यम्।
अव पुरस्तात्। अव दक्षिणात्तात्।
अव पश्चात्तात्। अवोत्तरात्तात्।
अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात्॥४॥

त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः।
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः।
त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥५॥

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः।
त्वं चत्वारि वाक् {परिमिता} पदानि।
त्वं गुणत्रयातीतः। त्वं अवस्थात्रयातीतः।
त्वं देहत्रयातीतः। त्वं कालत्रयातीतः।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मकः।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्।

त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं
रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं
ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम्॥६॥

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम्।
अनुस्वारः परतरः। अर्धेन्दुलसितम्।
तारेण ऋद्धम्। एतत्तव मनुस्वरूपम्॥७॥

गकारः पूर्वरूपम्। अकारो मध्यरूपम्।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्। बिन्दुरुत्तररूपम्।
नादस्संधानम्। सग्ं‌हिता संधिः॥८॥

सैषा गणेशविद्या। गणक ऋषिः।
निचृद्गायत्रीच्छन्दः। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नमः॥९॥

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥१०॥

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम्॥

भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः॥११॥

नमो व्रातपतये।नमो गणपतये।
नमः प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय
विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः॥१२॥

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते। स सर्वत्र सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।
सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायं प्रातः प्रयुञ्जानो पापोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति॥१३॥

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्॥१४॥

अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति।
चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति।
इत्यथर्वणवाक्यम्।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यान्न बिभेति कदाचनेति॥१५॥

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति।
स मेधावान् भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति।
यस्साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते॥१६॥

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहेमहानद्यां प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमन्त्रो भवति
महाविघ्नात् प्रमुच्यते। महादोषात् प्रमुच्यते।
महाप्रत्यवायात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद् भवति स सर्वविद् भवति।
य एवं वेद। इत्युपनिषत्॥१७॥

ॐ शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः॥

गणेश अथर्वशीर्ष इन हिंदी पीडीएफ़
गणेश अथर्वशीर्ष पाठ विधि
गणेश अथर्वशीर्ष पाठ के लाभ

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हिन्दी अर्थ

गणेश अथर्वशीर्ष हिंदी में

ॐ नमस्ते गणपतये।

ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः।
भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवाग्‍ँसस्तनूभिः।
व्यशेम देवहितं यदायूः।

स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

हे देवताओं, हम अपने कानों से शुभ (कल्याणकारी) बातें सुनें, यज्ञों के योग्य हम अपनी आँखों से शुभ दृश्य देखें। स्थिर अंगों और स्वस्थ शरीर के साथ, देवताओं की स्तुति करते हुए, हम उस आयु को प्राप्त करें जो देवताओं के हित में हो। हमारे लिए इन्द्र, पूषा, तार्क्ष्य (गरुड़) और बृहस्पति देव शुभता प्रदान करें।
ॐ शांति, शांति, शांति।

ॐ नमस्ते गणपतये॥१॥
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्त्वमसि।
त्वमेव केवलं कर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्ताऽसि।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम्॥२॥

ॐकारापति भगवान गणपति को नमस्कार है। हे गणेश! तुम्हीं प्रत्यक्ष तत्व हो। तुम्हीं केवल कर्ता हो। तुम्हीं केवल धर्ता हो। तुम्हीं केवल हर्ता हो। निश्चयपूर्वक तुम्हीं इन सब रूपों में विराजमान ब्रह्म हो। तुम साक्षात नित्य आत्मस्वरूप हो।

ऋतं वच्मि। सत्यं वच्मि॥३॥

मैं ऋत न्याययुक्त बात कहता हूं। सत्य कहता हूं।

अव त्वं माम्। अव वक्तारम्।
अव श्रोतारम्। अव दातारम्।
अव धातारम्। अवानूचानमव शिष्यम्।
अव पुरस्तात्। अव दक्षिणात्तात्।
अव पश्चात्तात्। अवोत्तरात्तात्।
अव चोर्ध्वात्तात्। अवाधरात्तात्।
सर्वतो मां पाहि पाहि समन्तात्॥४॥

हे पार्वतीनंदन! तुम मेरी (मुझ शिष्य की) रक्षा करो। वक्ता (आचार्य) की रक्षा करो। श्रोता की रक्षा करो। दाता की रक्षा करो। धाता की रक्षा करो। व्याख्या करने वाले आचार्य की रक्षा करो। शिष्य की रक्षा करो। पश्चिम से रक्षा। पूर्व से रक्षा करो। उत्तर से रक्षा करो। दक्षिण से रक्षा करो। ऊपर से रक्षा करो। नीचे से रक्षा करो। सब ओर से मेरी रक्षा करो। चारों ओर से मेरी रक्षा करो।

त्वं वाङ्मयस्त्वं चिन्मयः।
त्वमानन्दमयस्त्वं ब्रह्ममयः।
त्वं सच्चिदानन्दाऽद्वितीयोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि॥५॥

तुम वाङ्‍मय हो, चिन्मय हो। तुम आनंदमय हो। तुम ब्रह्ममय हो। तुम सच्चिदानंद अद्वितीय हो। तुम प्रत्यक्ष ब्रह्म हो। तुम दानमय विज्ञानमय हो।

सर्वं जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्वं जगदिदं त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्वं जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।
सर्वं जगदिदं त्वयि प्रत्येति।
त्वं भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः।
त्वं चत्वारि वाक् {परिमिता} पदानि।
त्वं गुणत्रयातीतः। त्वं अवस्थात्रयातीतः।
त्वं देहत्रयातीतः। त्वं कालत्रयातीतः।
त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्। त्वं शक्तित्रयात्मकः।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं 
रुद्रस्त्वमिन्द्रस्त्वमग्निस्त्वं
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चन्द्रमास्त्वं ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम्॥६॥

तुम सत्व, रज और तम तीनों गुणों से परे हो। तुम जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति इन तीनों अवस्थाओं से परे हो। तुम स्थूल, सूक्ष्म औ वर्तमान तीनों देहों से परे हो। तुम भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों से परे हो। तुम मूलाधार चक्र में नित्य स्थित रहते हो। इच्छा, क्रिया और ज्ञान तीन प्रकार की शक्तियाँ तुम्हीं हो। तुम्हारा योगीजन नित्य ध्यान करते हैं। तुम ब्रह्मा हो, तुम विष्णु हो, तुम रुद्र हो, तुम इन्द्र हो, तुम अग्नि हो, तुम वायु हो, तुम सूर्य हो, तुम चंद्रमा हो, तुम ब्रह्म हो, भू:, र्भूव:, स्व: ये तीनों लोक तथा ॐकार वाच्य पर ब्रह्म भी तुम हो।

गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादींस्तदनन्तरम्।
अनुस्वारः परतरः। अर्धेन्दुलसितम्।
तारेण ऋद्धम्। एतत्तव मनुस्वरूपम्॥७॥

गकारः पूर्वरूपम्। अकारो मध्यरूपम्।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम्। बिन्दुरुत्तररूपम्।
नादस्संधानम्। सग्ं‌हिता संधिः॥८॥

सैषा गणेशविद्या। गणक ऋषिः।
निचृद्गायत्रीच्छन्दः। गणपतिर्देवता।
ॐ गं गणपतये नमः॥९॥

गण के आदि अर्थात ‘ग्’ कर पहले उच्चारण करें। उसके बाद वर्णों के आदि अर्थात ‘अ’ उच्चारण करें। उसके बाद अनुस्वार उच्चारित होता है। इस प्रकार अर्धचंद्र से सुशोभित ‘गं’ ॐकार से अवरुद्ध होने पर तुम्हारे बीज मंत्र का स्वरूप (ॐ गं) है। गकार इसका पूर्वरूप है।बिन्दु उत्तर रूप है। नाद संधान है। संहिता संविध है। ऐसी यह गणेश विद्या है। इस महामंत्र के गणक ऋषि हैं। निचृंग्दाय छंद है श्री मद्महागणपति देवता हैं। वह महामंत्र है- ॐ गं गणपतये नम:।

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि।
तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्॥१०॥

एक दंत को हम जानते हैं। वक्रतुण्ड का हम ध्यान करते हैं। वह दन्ती (गजानन) हमें प्रेरणा प्रदान करें। यह गणेश गायत्री है।

एकदन्तं चतुर्हस्तं पाशमङ्कुशधारिणम्।
रदं च वरदं हस्तैर्बिभ्राणं मूषकध्वजम्॥
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गं रक्तपुष्पैस्सुपूजितम्॥

भक्तानुकम्पिनं देवं जगत्कारणमच्युतम्।
आविर्भूतं च सृष्ट्यादौ प्रकृतेः पुरुषात्परम्।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनां वरः॥११॥

एकदंत चतुर्भज चारों हाथों में पाक्ष, अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किए तथा मूषक चिह्न की ध्वजा लिए हुए, रक्तवर्ण लंबोदर वाले सूप जैसे बड़े-बड़े कानों वाले रक्त वस्त्रधारी शरीर प रक्त चंदन का लेप किए हुए रक्तपुष्पों से भलिभाँति पूजित। भक्त पर अनुकम्पा करने वाले देवता, जगत के कारण अच्युत, सृष्टि के आदि में आविर्भूत प्रकृति और पुरुष से परे श्रीगणेशजी का जो नित्य ध्यान करता है, वह योगी सब योगियों में श्रेष्ठ है।

नमो व्रातपतये। नमो गणपतये।
नमः प्रमथपतये।
नमस्तेऽस्तु लम्बोदरायैकदन्ताय
विघ्ननाशिने शिवसुताय वरदमूर्तये नमः॥१२॥

व्रात (देव समूह) के नायक को नमस्कार। गणपति को नमस्कार। प्रथमपति (शिवजी के गणों के अधिनायक) के लिए नमस्कार। लंबोदर को, एकदंत को, शिवजी के पुत्र को तथा श्रीवरदमूर्ति को नमस्कार-नमस्कार ।

एतदथर्वशीर्षं योऽधीते स ब्रह्मभूयाय कल्पते।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते। स सर्वत्र सुखमेधते।
स पञ्चमहापापात्प्रमुच्यते।

यह अथर्वशीर्ष (अथर्ववेद का उप‍‍‍निषद) है। इसका पाठ जो करता है, ब्रह्म को प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है। सब प्रकार के विघ्न उसके लिए बाधक नहीं होते। वह सब जगह सुख पाता है। वह पांचों प्रकार के महान पातकों तथा उपपातकों से मुक्त हो जाता है।

सायमधीयानो दिवसकृतं पापं नाशयति।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतं पापं नाशयति।
सायं प्रातः प्रयुञ्जानो पापोऽपापो भवति।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति।
धर्मार्थकाममोक्षं च विन्दति॥१३॥

सायंकाल पाठ करने वाला दिन के पापों का नाश करता है। प्रात:काल पाठ करने वाला रात्रि के पापों का नाश करता है। जो प्रात:- सायं दोनों समय इस पाठ का प्रयोग करता है वह निष्पाप हो जाता है। वह सर्वत्र विघ्नों का नाश करता है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त करता है।

इदमथर्वशीर्षमशिष्याय न देयम्।
यो यदि मोहाद्दास्यति स पापीयान् भवति।
सहस्रावर्तनाद्यं यं काममधीते तं तमनेन साधयेत्॥१४॥

इस अथर्वशीर्ष को जो शिष्य न हो उसे नहीं देना चाहिए। जो मोह के कारण देता है वह पातकी हो जाता है। सहस्र (हजार) बार पाठ करने से जिन-जिन कामों-कामनाओं का उच्चारण करता है, उनकी सिद्धि इसके द्वारा ही मनुष्य कर सकता है।

अनेन गणपतिमभिषिञ्चति स वाग्मी भवति।
चतुर्थ्यामनश्नन् जपति स विद्यावान् भवति।
इत्यथर्वणवाक्यम्।
ब्रह्माद्यावरणं विद्यान्न बिभेति कदाचनेति॥१५॥

इसके द्वारा जो गणपति को स्नान कराता है, वह वक्ता बन जाता है। जो चतुर्थी तिथि को उपवास करके जपता है वह विद्यावान हो जाता है, यह अथर्व वाक्य है जो इस मं‍त्र के द्वारा तपश्चरण करना जानता है वह कदापि भय को प्राप्त नहीं होता।

यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति।
स मेधावान् भवति।
यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छितफलमवाप्नोति।
यस्साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते॥१६॥

जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का यजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। जो लाजो (धानी-लाई) के द्वारा यजन करता है वह यशस्वी होता है, मेधावी होता है। जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा यजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है। जो घृत के सहित समिधा से यजन करता है, वह सब कुछ प्राप्त करता है।

अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा सूर्यवर्चस्वी भवति।
सूर्यग्रहेमहानद्यां प्रतिमासन्निधौ वा जप्त्वा सिद्धमन्त्रो भवति
महाविघ्नात् प्रमुच्यते। महादोषात् प्रमुच्यते।
महाप्रत्यवायात् प्रमुच्यते।
स सर्वविद् भवति स सर्वविद् भवति।
य एवं वेद। इत्युपनिषत्॥१७॥

आठ ब्राह्मणों को सम्यक रीति से ग्राह कराने पर सूर्य के समान तेजस्वी होता है। सूर्य ग्रहण में महानदी में या प्रतिमा के समीप जपने से मंत्र सिद्धि होती है। वह महाविघ्न से मुक्त हो जाता है। जो इस प्रकार जानता है, वह सर्वज्ञ हो जाता है वह सर्वज्ञ हो जाता है।

ॐ शान्तिश्शान्तिश्शान्तिः॥

गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ कैसे करें?

प्रातः उठकर दैनिक क्रियाओं से निवृत्त होकर स्नान आदि करके स्वच्छ कपड़े धारण करें। पूजा स्थल पर कुश या स्वच्छ आसन बिछाकर पूर्व, उत्तर या ईशान दिशा की ओर मुख करके बैठें। और अपने सामने भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र रखें। फिर ध्यान और संकल्प करें और श्री गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ शुरू करें। बुधवार, संकष्टी चतुर्थी और गणेश चतुर्थी पर इसका पाठ अधिक महत्वपूर्ण होता है। पाठ के उपरांत गणेश जी को दूर्वा, लड्डू या मोदक अर्पित करें।

गणेश जी का पाठ कैसे करें?

गणेश जी का कोई भी पाठ शुरू करने के लिए हो सके तो बुधवार के दिन से करें, इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर संकल्प लें और पाठ शुरू करें। पाठ के दौरान इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि आपका उच्चारण सही हो।

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