शिवाष्टकम् - जय शिवशंकर जय गंगाधर (Shivashtakam Jai Shivshankar Jai Gangadhar)

Shivashtakam Jai Shivshankar Jai Gangadhar

जय शिवशंकर, जय गंगाधर,
करुणाकर करतार हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी,
सुखराशी सुख-सार हरे,
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर,
जय जय प्रेमागार हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी,
अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय सगुण अनामय,
निराकार, साकार हरे ,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥१॥

जय रामेश्वर, जय नागेश्वर,
वैद्यनाथ, केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ जय,
महाकाल ओंकार हरे,
त्रयम्बकेश्वर, जय घुश्मेस्वर,
भीमेश्वर, जगतार हरे,
काशीपति, श्री विश्वनाथ जय,
मंगलमय अघ-हार हरे,
नीलकण्ठ जय, भूतनाथ,
मृत्युंजय, अविकार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥२॥

जय महेश, जय जय भवेश,
जय आदिदेव महादेव विभो,
किस मुख से हे गुणातीत प्रभु,
तव महिमा अपार वर्णन हो,
जय भवकारक, तारक, हारक,
पातक-दारक, शिव शम्भो,
दीन दुःखहर, सर्व सुखाकर,
प्रेम सुधाकर शिव शम्भो,
पार लगा दो भवसागर से,
बनकर करुणाधार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥३॥

जय मनभावन, जय अतिपावन,
शोक-नशावन शिव शम्भो,
सहज वचन हर, जलज-नयन-वर,
धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
विपद विदारन, अधम उबारन,
सत्य सनातन, शिव शम्भो,
सहज वचन हर, जलज-नयन-वर,
धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन
हर-चरन मनन धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप प्रलयंकर,
जग के मूलाधार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥४॥

भोलानाथ कृपालु दयामय,
औघड़दानी शिव योगी,
निमित्र मात्र में देते हैं,
नवनिधि मनमानी शिव योगी,
सरल ह्रदय अतिकरुणा सागर,
अकथ कहानी शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटा कर
बने मसानी शिव योगी,
स्वयं अकिंचन, जनमन रंजन,
पर शिव परम उदार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥५॥

आशुतोष इस मोहमयी
निद्रा से मुझे जगा देना,
विषय-वेदना से विषयों
को माया-धीश छुड़ा देना,
रूप-सुधा की एक बूँद से
जीवन मुक्त बना देना,
दिव्य-ज्ञान-भण्डार-युगल
चरणों में लगन लगा देना,
एक बार इस मन मन्दिर में
कीजे पद संचार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥६॥

दानी हो, दो भिक्षा में अपनी
अनपायनि भक्ति प्रभो,
शक्तिमान हो, दो तुम अपने
चरणों में अनुरक्ति प्रभो,
पूर्ण ब्रह्म हो, दो तुम अपने
रूप का सच्चा ज्ञान प्रभो,
स्वामी हो, निज सेवक की
सुन लेना करुण पुकार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥७॥

तुम बिन, व्याकुल हूँ प्राणेश्वर
आ जाओ भगवंत हरे,
चरण-शरण की बांह गहो,
हे उमा-रमण प्रियकंत हरे,
विरह व्यथित हूँ, दीन दुःखी हूँ,
दीन दयालु अनन्त हरे,
आओ तुम मेरे हो जाओ,
आ जाओ श्रीमन्त हरे,
मेरी इस दयनीय दशा पर,
कुछ तो करो विचार हरे,
पार्वती पति, हर हर शम्भो,
पाहि पाहि दातार हरे ॥८॥

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