अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र अर्थ सहित- शंकराचार्य कृत (Ardhnarishwar Stotra, Champeya Gaurardha)

Ardhnarishwar Stotra, Champeya Gaurardha

अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक अत्यंत सुंदर और गूढ़ स्तोत्र है, जो भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप की स्तुति करता है। इस रूप में शिव और शक्ति का अद्वैत स्वरूप दर्शाया गया है, जहाँ भगवान शिव का आधा शरीर देवी पार्वती का रूप होता है। यह स्तोत्र आठ श्लोकों का है, जिसमें शिव और शक्ति के विभिन्न गुणों और सौंदर्य का वर्णन किया गया है।

अर्धनारीश्वर स्तोत्रम

चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥१॥

कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुंजविचर्चिताय।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥२॥

चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥३॥

विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥४॥

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥५॥

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥६॥

प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय॥७॥

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥८॥

फलश्रुति

एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि:॥९॥

॥ इति आदिशंकराचार्य विरचित अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रम् सम्पूर्णम्॥

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हिन्दी अर्थ

अर्धनारीश्वर स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥१॥

जिनकी अर्ध देह (बायाँ अंग) में चम्पा के पुष्प के समान कान्तिमान्‌ माता पार्वती धम्मिलिकाय - केशकलाप से सुशोभित हैं और अर्थ देह में कर्पूर के समान शुभ्र जटाधारी भगवान्‌ शंकर सुशोभित हो रहे हैं, उन माता पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार है ॥०१॥

कस्तूरिकाकुंकुमचर्चितायै चितारजः पुंजविचर्चिताय।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥२॥

भगवती पार्वती जी का भाल कस्तुरी, कुंकुम और केशर से लेपित है, और इन्होंने करुणावश कन्दर्प को जीवनदान दिया है, भगवान्‌ शिव की देह चिता भस्म के पुंज से लेपित है तथा जिन्होंने अपने त्रिनेत्राग्नि की ज्वाला से कन्दर्प को भस्म कर दिया, उन माता पार्वती और भगवान्‌ शिव को नमस्कार है ॥०२॥

चलत्क्वणत्कंकणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणीनूपुराय।
हेमांगदायै भुजगांगदाय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥३॥

भगवती माता पार्वती ने हाथों में कंकड़ एवं पैरों में झनझन ध्वनियुक्त नूपुर को धारण किया है और उनकी भुजाओं में स्वर्णरचित बाजुबन्द सुशोभित हो रहे हैं, भगवान्‌ शंकर ने फणधारि सर्पराज को अपने हाथों का बाजुबन्द तथा उसी को अपने चरणकमलों का आभूषण बनाया है जिससे झंकार ध्वनित होती है, उनके भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं, उन माताँ पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार है ॥०३॥

विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपंकेरुहलोचनाय।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥४॥

माता पार्वती के दो विशाल नेत्र हैं, जो कुसुमित नील कमल के सदृश सुंदर हैं और भगवान शंकर के सूर्य, चन्द्र, अग्निरूपी तीन नेत्र हैं, जो नवपल्लित कमल के समान हैं, उन माता पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार है ॥०४॥

मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालांकितकन्धराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥५॥

माता पार्वती के केशपाश मंदार आदि पुष्पों के हार से सुशोभित हैं, और इनहोने अति दिव्य वस्त्रों को धारण किया है, भगवान शंकर के कंठ में कपालमाला शोभायमान है और जो दिगंबर रूप में शुशोभित हैं, उन माता पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार है ॥०५॥

अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥६॥

माता पार्वती के घुँघराले केश (अलकें) बादल की तरह हैं। उनका सरल स्वभाव है, उनके समान कोई दूसरा नहीं है, भगवान शिव ने विद्युत की आभा के समान लालिमायुक्त ताम्र जटाओं को धारण किया है, जो समस्त जगत के अधिपति हैं, उन माता पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ ॥०६॥

प्रपंचसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय।
जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नम: शिवायै च नम: शिवाय॥७॥

जो जगत की रचना करने के लिए लास्यनृत्य करने वाली हैं, समस्त संसार की जननी हैं, जगत के संहार के लिए तांडव नृत्य करने वाले भगवान शंकर समस्त जगत के पिता हैं, उन माता पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार करता हूँ ॥०७॥

प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नम: शिवायै च नम: शिवाय॥८॥

जिनके कर्णाभरण दीप्यमान रत्नों की आभा से चमक रहे हैं, वह भगवती कल्याणकारिणी शक्ति से समन्वित है, जिन्होने उज्जवल फनों से युक्त महान सर्पों को आभूषण बनाया है, वह भगवान शंकर कल्याणकारी गुणों से समन्वित है, उन माता पार्वती और भगवान शिव को नमस्कार है ॥०८॥

फलश्रुति
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धि:॥९॥

जो व्यक्ति इस अष्टक का पाठ श्रद्धा और भक्ति से करता है, वह इस पृथ्वी पर सम्माननीय होता है और दीर्घायु प्राप्त करता है। वह अनंत काल तक सौभाग्य प्राप्त करता है और उसके सभी कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है।

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