शीतलाष्टक स्तोत्र - अर्थ सहित (Shri Sheetla Ashtakam Stotram)

शीतलाष्टक स्तोत्र, शीतला माता की स्तुति में रचा गया एक पावन स्तोत्र है, जिसका पाठ मुख्यतया शीतला सप्तमी, अष्टमी और शीतला माता के पूजन अवसरों पर किया जाता है। इसके अतिरिक्त भक्तजन इसका पाठ माता शीतला के प्रकोप से बचने के लिए भी करते हैं।
शीतलाष्टक स्तोत्र
॥ श्रीगणेशाय नमः॥
विनियोग:
ऊँ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतली देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः॥
ऋष्यादि-न्यासः
श्रीमहादेव ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे, श्रीशीतला देवतायै नमः हृदि, लक्ष्मी (श्री) बीजाय नमः गुह्ये, भवानी शक्तये नमः पादयो, सर्व-विस्फोटक-निवृत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे॥
ध्यानः
ध्यायामि शीतलां देवीं, रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनी-कलशोपेतां
शूर्पालङ्कृत-मस्तकाम्॥
मानस-पूजनः
ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ
हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ यं
वायु-तत्त्वात्मकं धूपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ रं
अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ वं
जल-तत्त्वात्मकं नैवेद्यं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ॐ सं
सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं श्री शीतला-देवी-प्रीतये समर्पयामि नमः।
मन्त्रः
ॐ ह्रीं श्रीं शीतलायै नमः॥ (इस मंत्र का 11 बार जाप करें)
॥ ईश्वर उवाच॥
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं
कृत मस्तकाम्॥१॥
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं
महत्॥२॥
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य
प्रणश्यति॥३॥
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न
जायते॥४॥
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च।
प्रनष्टचक्षुषः
पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्॥५॥
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान्।
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका
अमृत वर्षिणी॥६॥
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले
यान्ति संक्षयम्॥७॥
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां
पश्यामि देवताम्॥८॥
॥ फल-श्रुति॥
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि
तस्य मृत्युर्न जायते॥९॥
अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न
जायते॥१०॥
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः।
उपसर्ग विनाशाय परं
स्वस्त्ययनं महत्॥११॥
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै
नमो नमः॥१२॥
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः।
शीतला वाहनश्चैव
दूर्वाकन्दनिकृन्तनः॥१३॥
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न
जायते॥१४॥
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति
युताय वै॥१५॥
॥ श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाअष्टक स्तोत्रं॥
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हिन्दी अर्थ
शीतलाष्टक स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित
विनियोग:
ऊँ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शीतली देवता, लक्ष्मी बीजम्, भवानी शक्तिः, सर्वविस्फोटक निवृत्तये जपे विनियोगः॥
इस श्रीशीतला स्तोत्र के ऋषि महादेव जी, छन्द अनुष्टुप, देवता शीतला माता, बीज लक्ष्मी जी तथा शक्ति भवानी देवी हैं। सभी प्रकार के विस्फोटक, चेचक आदि, के निवारण हेतु इस स्तोत्र का जप में विनियोग होता है।
॥ ईश्वर उवाच॥
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम्।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं
कृत मस्तकाम्॥१॥
ईश्वर बोले: गर्दभ(गधा) पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में मार्जनी(झाड़ू) तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वन्दना करता हूँ॥१॥
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम्।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं
महत्॥२॥
मैं सभी प्रकार के भय तथा रोगों का नाश करने वाली उन भगवती शीतला की वन्दना करता हूँ, जिनकी शरण में जाने से विस्फोटक अर्थात चेचक का बड़े से बड़ा भय दूर हो जाता है॥२॥
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य
प्रणश्यति॥३॥
चेचक की जलन से पीड़ित जो व्यक्ति “शीतले-शीतले” - ऎसा उच्चारण करता है, उसका भयंकर विस्फोटक रोग जनित भय शीघ्र ही नष्ट हो जाता है॥३॥
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न
जायते॥४॥
जो मनुष्य आपकी प्रतिमा को हाथ में लेकर जल के मध्य स्थित हो आपकी पूजा करता है, उसके घर में विस्फोटक, चेचक, रोग का भीषण भय नहीं उत्पन्न होता है॥४॥
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च।
प्रनष्टचक्षुषः
पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम्॥५॥
हे शीतले! ज्वर से संतप्त, मवाद की दुर्गन्ध से युक्त तथा विनष्ट नेत्र ज्योति वाले मनुष्य के लिए आपको ही जीवनरूपी औषधि कहा गया है॥५॥
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान्।
विस्फोटक विदीर्णानां त्वमेका
अमृत वर्षिणी॥६॥
हे शीतले! मनुष्यों के शरीर में होने वाले तथा अत्यन्त कठिनाई से दूर किये जाने वाले रोगों को आप हर लेती हैं, एकमात्र आप ही विस्फोटक - रोग से विदीर्ण मनुष्यों के लिये अमृत की वर्षा करने वाली हैं॥६॥
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम्।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले
यान्ति संक्षयम्॥७॥
हे शीतले! मनुष्यों के गलगण्ड ग्रह आदि तथा और भी अन्य प्रकार के जो भीषण रोग हैं, वे आपके ध्यान मात्र से नष्ट हो जाते हैं॥७॥
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां
पश्यामि देवताम्॥८॥
उस उपद्रवकारी पाप रोग की न कोई औषधि है और ना मन्त्र ही है. हे शीतले! एकमात्र आप जननी को छोड़कर (उस रोग से मुक्ति पाने के लिए) मुझे कोई दूसरा देवता नहीं दिखाई देता॥८॥
॥ फल-श्रुति॥
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम्।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि
तस्य मृत्युर्न जायते॥९॥
हे देवि! जो प्राणी मृणाल – तन्तु के समान कोमल स्वभाव वाली और नाभि तथा हृदय के मध्य विराजमान रहने वाली आप भगवती का ध्यान करता है, उसकी मृत्यु नहीं होती॥९॥
अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा।
विस्फोटकभयं घोरं गृहे तस्य न
जायते॥१०॥
जो मनुष्य भगवती शीतला के इस अष्टक का नित्य पाठ करता है, उसके घर में विस्फोटक का घोर भय नहीं रहता॥१०॥
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः।
उपसर्ग विनाशाय परं
स्वस्त्ययनं महत्॥११॥
मनुष्यों को विघ्न-बाधाओं के विनाश के लिये श्रद्धा तथा भक्ति से युक्त होकर इस परम कल्याणकारी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए अथवा श्रवण (सुनना) करना चाहिए॥११॥
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै
नमो नमः॥१२॥
हे शीतले! आप जगत की माता हैं, हे शीतले! आप जगत के पिता हैं, हे शीतले! आप जगत का पालन करने वाली हैं, आप शीतला को बार-बार नमस्कार हैं॥१२॥
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः।
शीतला वाहनश्चैव
दूर्वाकन्दनिकृन्तनः॥१३॥
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत्।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न
जायते॥१४॥
जो व्यक्ति रासभ, गर्दभ, खर, वैशाखनन्दन, शीतला वाहन, दूर्वाकन्द – निकृन्तन – भगवती शीतला के वाहन के इन नामों का उनके समक्ष पाठ करता है, उसके घर में शीतला रोग नहीं होता है॥१३-१४॥
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित्।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति
युताय वै॥१५॥
इस शीतलाष्टक स्तोत्र को जिस किसी अनधिकारी को नहीं देना चाहिए अपितु भक्ति तथा श्रद्धा से सम्पन्न व्यक्ति को ही सदा यह स्तोत्र प्रदान करना चाहिए॥१५॥