श्री गंगा अष्टोत्तर शतनामावली (Shri Ganga Ashtottara Shatanamavali)

Shri Ganga Ashtottara Shatanamavali

ॐ गंगायै नमः।
ॐ विष्णुपादसंभूतायै नमः।
ॐ हरवल्लभायै नमः।
ॐ हिमाचलेन्द्रतनयायै नमः।
ॐ गिरिमण्डलगामिन्यै नमः।
ॐ तारकारातिजनन्यै नमः।
ॐ सगरात्मजतारकायै नमः।
ॐ सरस्वतीसमयुक्तायै नमः।
ॐ सुघोषायै नमः ॥१०॥

ॐ सिन्धुगामिन्यै नमः।
ॐ भागीरत्यै नमः।
ॐ भाग्यवत्यै नमः।
ॐ भगीरतरथानुगायै नमः।
ॐ त्रिविक्रमपदोद्भूतायै नमः।
ॐ त्रिलोकपथगामिन्यै नमः।
ॐ क्षीरशुभ्रायै नमः।
ॐ बहुक्षीरायै नमः।
ॐ क्षीरवृक्षसमाकुलायै नमः ॥२०॥

ॐ त्रिलोचनजटावासायै नमः।
ॐ ऋणत्रयविमोचिन्यै नमः।
ॐ त्रिपुरारिशिरःचूडायै नमः।
ॐ जाह्नव्यै नमः।
ॐ नरकभीतिहृते नमः।
ॐ अव्ययायै नमः।
ॐ नयनानन्ददायिन्यै नमः।
ॐ नगपुत्रिकायै नमः।
ॐ निरञ्जनायै नमः।
ॐ नित्यशुद्धायै नमः।
ॐ नीरजालिपरिष्कृतायै नमः ॥३०॥

ॐ सावित्र्यै नमः।
ॐ सलिलावासायै नमः।
ॐ सागरांबुसमेधिन्यै नमः।
ॐ रम्यायै नमः।
ॐ बिन्दुसरसे नमः।
ॐ अव्यक्तायै नमः।
ॐ अव्यक्तरूपधृते नमः।
ॐ उमासपत्न्यै नमः।
ॐ शुभ्राङ्गायै नमः।
ॐ श्रीमत्यै नमः ॥४०॥

ॐ धवलांबरायै नमः।
ॐ आखण्डलवनवासायै नमः।
ॐ कंठेन्दुकृतशेकरायै नमः।
ॐ अमृताकारसलिलायै नमः।
ॐ लीलालिंगितपर्वतायै नमः।
ॐ विरिञ्चिकलशावासायै नमः।
ॐ त्रिवेण्यै नमः।
ॐ त्रिगुणात्मकायै नमः।
ॐ संगत अघौघशमन्यै नमः।
ॐ भीतिहर्त्रे नमः ॥५०॥

ॐ शंखदुंदुभिनिस्वनायै नमः।
ॐ भाग्यदायिन्यै नमः।
ॐ नन्दिन्यै नमः।
ॐ शीघ्रगायै नमः।
ॐ शरण्यै नमः।
ॐ शशिशेकरायै नमः।
ॐ शाङ्कर्यै नमः।
ॐ शफरीपूर्णायै नमः।
ॐ भर्गमूर्धकृतालयायै नमः।
ॐ भवप्रियायै नमः ॥६०॥

ॐ सत्यसन्धप्रियायै नमः।
ॐ हंसस्वरूपिण्यै नमः।
ॐ भगीरतभृतायै नमः।
ॐ अनन्तायै नमः।
ॐ शरच्चन्द्रनिभाननायै नमः।
ॐ ओंकाररूपिण्यै नमः।
ॐ अनलायै नमः।
ॐ क्रीडाकल्लोलकारिण्यै नमः।
ॐ स्वर्गसोपानशरण्यै नमः।
ॐ सर्वदेवस्वरूपिण्यै नमः ॥७०॥

ॐ अंबःप्रदायै नमः।
ॐ दुःखहन्त्र्यैनमः।
ॐ शान्तिसन्तानकारिण्यै नमः।
ॐ दारिद्र्यहन्त्र्यै नमः।
ॐ शिवदायै नमः।
ॐ संसारविषनाशिन्यै नमः।
ॐ प्रयागनिलयायै नमः।
ॐ श्रीदायै नमः।
ॐ तापत्रयविमोचिन्यै नमः।
ॐ शरणागतदीनार्तपरित्राणायै नमः ॥८०॥

ॐ सुमुक्तिदायै नमः।
ॐ पापहन्त्र्यै नमः।
ॐ पावनाङ्गायै नमः।
ॐ परब्रह्मस्वरूपिण्यै नमः।
ॐ पूर्णायै नमः।
ॐ पुरातनायै नमः।
ॐ पुण्यायै नमः।
ॐ पुण्यदायै नमः।
ॐ पुण्यवाहिन्यै नमः।
ॐ पुलोमजार्चितायै नमः ॥९०॥

ॐ भूदायै नमः।
ॐ पूतत्रिभुवनायै नमः।
ॐ जयायै नमः।
ॐ जंगमायै नमः।
ॐ जंगमाधारायै नमः।
ॐ जलरूपायै नमः।
ॐ जगद्धात्र्यै नमः।
ॐ जगद्भूतायै नमः।
ॐ जनार्चितायै नमः।
ॐ जह्नुपुत्र्यै नमः ॥१००॥

ॐ जगन्मात्रे नमः।
ॐ जंभूद्वीपविहारिण्यै नमः।
ॐ भवपत्न्यै नमः।
ॐ भीष्ममात्रे नमः।
ॐ सिक्तायै नमः।
ॐ रम्यरूपधृते नमः।
ॐ उमासहोदर्यै नमः।
ॐ अज्ञानतिमिरापहृते नमः ॥१०८॥

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Ganga Ashtottara Sata Namaavali
Ganga Ashtothram in Telugu
गंगा आवाहन के लिए कौन सा मंत्र बोला जाता है?

गंगा आवाहन के लिए निम्न मंत्र बोला जाता है:
"गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिं कुरु॥"
इसका अर्थ है – हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी! आप सभी नदियों का पवित्र जल इस स्थान पर समाहित हो जाए।

मां गंगा ने अपने सात पुत्रों को क्यों मारा था?

यह एक पौराणिक कथा है। गंगा माता ने अपने सात पुत्रों को इसलिए नदी में बहा दिया था क्योंकि वे सभी वसुओं का पुनर्जन्म थे, जिन्हें श्राप के कारण पृथ्वी पर जन्म लेना पड़ा था। गंगा ने उन्हें उनके श्राप से मुक्त करने के लिए यह कार्य किया। राजा शांतनु ने गंगा से विवाह करते समय वचन दिया था कि वे उनके किसी काम में हस्तक्षेप नहीं करेंगे, इसलिए वे चुप रहे।

गंगा मैया का प्रमुख मंत्र कौन सा है?

गंगा माता का एक प्रसिद्ध मंत्र है: "ॐ नमो भगवते गंगे।" या "ॐ श्री गंगे नमः।" इन मंत्रों का जाप गंगा नदी के प्रति श्रद्धा प्रकट करने और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति हेतु किया जाता है।

गंगा स्नान करते समय कौन सा मंत्र बोला जाता है?

गंगा स्नान करते समय यह मंत्र बोला जाता है:
"हर हर गंगे, जय गंगे माता।" या
"गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिं कुरु॥"
 यह मंत्र बोलने से स्नान और ध्यान दोनों का पुण्य प्राप्त होता है।

ब्रह्मा जी ने गंगा को श्राप क्यों दिया था?

एक कथा के अनुसार, जब गंगा का तेज और वेग इतना बढ़ गया कि उसने कई लोकों और संतुलन को प्रभावित किया, तब ब्रह्मा जी ने उसे नियंत्रित करने हेतु उसे पृथ्वी पर अवतरित कर दिया। कुछ मान्यताओं में कहा जाता है कि ब्रह्मा ने उसे श्राप इसलिए दिया क्योंकि उसने अहंकार दिखाया था और स्वर्ग में अनावश्यक उथल-पुथल मचाई थी। श्राप के अनुसार, उसे पृथ्वी पर उतरकर मानवों के पाप धोने का कार्य करना था।

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