संघ सरिता बह रही है - संघ गीत (Sangh Sarita Bah Rahi Hai Lyrics)

Sangh Sarita Bah Rahi Hai Lyrics in Hindi with HD Image and Video

संघ सरिता बह रही है,
उस भगीरथ की अनोखी,
विजय गाथा कह रही है॥ध्रु ०॥

भेदकर विस्तृत शिलाएँ,
एक लघु धारा चली थी,
कन्दरा वन बीहड़ो को,
चीर निर्भर वह बढ़ी थी,
स्वर्ण गंगा व महानद,
रुप अनुपम गह रही है॥१॥

क्रूर बाधाएँ अनेको,
मार्ग कुंठित कर न पायीं,
क्रुध्द शंकर की जटा में,
वह असीमित क्या समायीं।
जहनु की जंघा बिदारी,
जाहनवी फिर चल पड़ी है॥२॥

कर सुसिंचित इस धरा को,
सुजल-सुफलां उर्वरा,
मातॄ भू का पुण्य भू का,
रुप है इसने सँवारा।
शुष्क मरु भू शेष क्यों फिर,
ताप भीषण सह रही है॥३॥

दूर सागर दृष्टि पथ में,
मार्ग में विश्राम कैसा,
ध्ये सागर से मिलन का,
आज संभ्रम सोच कैसा,
अथक अविरत साधना की,
पुण्य गाथा कह रही है॥४॥

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