श्री धनदालक्ष्मी स्तोत्रम् अर्थ सहित (Shri Dhanadalakshmi Stotram)

धनदालक्ष्मी स्तोत्रम् में कुल 21 श्लोक हैं, जिन्हें माँ लक्ष्मी के धनस्वरूप को समर्पित माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माँ पार्वती ने दरिद्रता नाश हेतु यह स्तोत्र स्वयं भगवान शिव से पूछा और सुना था। इस स्तोत्र के नियमित जाप से शीघ्र धनलाभ होता है, दरिद्रता दूर होती है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
धनदालक्ष्मी स्तोत्रम्
॥ धनदा उवाच॥
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।
कृपया
पार्वती प्राह शंकरं करुणाकरम्॥१॥
॥ देव्युवाच॥
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र
दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥२॥
॥ शिव उवाच॥
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।
उचितं
जगदम्बासि तव भूतानुकम्पया॥३॥
स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं
स्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो मम॥५॥
पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति
दरिद्रता॥६॥
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।
प्रार्थयत्तां यथाकामं
कामधेनुस्वरूपिणीम्॥७॥
धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं
प्रार्थयाम्यहम्॥८॥
धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय
सत्वरम्॥९॥
रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद प्रणते
मयि॥१०॥
आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये
दिव्यमाल्यानुशोभिते॥११॥
समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज लोचने॥१२॥
चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।
मत्ते भगवती मातः कलकण्ठरवामृते॥१३॥
हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य
गुणभाजने॥१४॥
क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे
धरालये॥१५॥
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व
जगदम्बिके॥१६॥
कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव
वन्दिते॥१७॥
धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये
पार्वतीशिवशंकरे॥१८॥
स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद
मयिकिंकरे॥१९॥
पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति पाठयिष्यन्ति
भक्तितः॥२०॥
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय
च।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥२१॥
॥ इति श्री धनलक्ष्मी स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
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हिन्दी अर्थ
धनदालक्ष्मी स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित
॥ धनदा उवाच॥
देवी देवमुपागम्य नीलकण्ठं मम प्रियम्।
कृपया पार्वती
प्राह शंकरं करुणाकरम्॥१॥
देवी पार्वती स्वयं भगवान शिव (नीलकंठ) के समीप प्रणाम करके कहती हैं, “हे करुणाकर महेश्वर! कृपा करके मेरी बात सुनिए।"
॥ देव्युवाच॥
ब्रूहि वल्लभ साधूनां दरिद्राणां कुटुम्बिनाम्।
दरिद्र
दलनोपायमंजसैव धनप्रदम्॥२॥
हे स्वामी! मुझे ऐसा उपाय बताइए जो साधुजनों और गरीब परिवारों की दरिद्रता दूर करे और उन्हें तुरंत धन प्रदान करे।
॥ शिव उवाच॥
पूजयन् पार्वतीवाक्यमिदमाह महेश्वरः।
उचितं जगदम्बासि
तव भूतानुकम्पया॥३॥
पार्वती की बात सुनकर महेश्वर शिव ने कहा – हे जगदम्बे! तुम सभी जीवों पर दया करने वाली हो, तुमने यह बहुत उचित बात पुछी है।
स सीतं सानुजं रामं सांजनेयं सहानुगम्।
प्रणम्य परमानन्दं वक्ष्येऽहं
स्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
मैं सीता सहित राम, लक्ष्मण, हनुमान और उनके सभी अनुयायियों को प्रणाम करके अब एक श्रेष्ठ स्तोत्र बताता हूँ।
धनदं श्रद्धानानां सद्यः सुलभकारकम्।
योगक्षेमकरं सत्यं सत्यमेव वचो
मम॥५॥
यह स्तोत्र श्रद्धालुओं को तुरंत धन देने वाला, योग-क्षेम प्रदान करने वाला है। मेरी बात पूर्णतः सत्य है।
पठंतः पाठयंतोऽपि ब्रह्मणैरास्तिकोत्तमैः।
धनलाभो भवेदाशु नाशमेति
दरिद्रता॥६॥
जो व्यक्ति इसे स्वयं पढ़े या दूसरों से पढ़वाए, विशेषकर आस्तिक ब्राह्मणों द्वारा, उसे शीघ्र धन की प्राप्ति होती है और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।
भूभवांशभवां भूत्यै भक्तिकल्पलतां शुभाम्।
प्रार्थयत्तां यथाकामं
कामधेनुस्वरूपिणीम्॥७॥
जो इस पृथ्वी पर जन्मे हैं वे अपने कल्याण के लिए, इस स्तोत्र रूपी भक्तिकल्पवृक्ष (इच्छापूर्ति करने वाली लता) से इच्छानुसार प्रार्थना करें; यह कामधेनु के समान फलदायक है।
धनदे धनदे देवि दानशीले दयाकरे।
त्वं प्रसीद महेशानि! यदर्थं
प्रार्थयाम्यहम्॥८॥
हे धन प्रदान करने वाली देवी! हे दानशील, दयामयी, महेश्वर की पत्नी! मैं जिस उद्देश्य से तुम्हारी प्रार्थना कर रहा हूँ, उस पर कृपा करो।
धराऽमरप्रिये पुण्ये धन्ये धनदपूजिते।
सुधनं र्धामिके देहि यजमानाय
सत्वरम्॥९॥
हे पुण्यमयी, देवताओं की प्रिय, धन्य देवी! जो धनदाता कुबेर द्वारा भी पूजी जाती हैं, यजमान को शीघ्र अच्छा और धर्मयुक्त धन प्रदान करो।
रम्ये रुद्रप्रिये रूपे रामरूपे रतिप्रिये।
शिखीसखमनोमूर्त्ते प्रसीद
प्रणते मयि॥१०॥
हे रमणीय रूपवाली, रुद्रप्रिया, श्रीराम स्वरूपा, रति को प्रिय, और कार्तिकेय की सखी! जो मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ, मुझ पर कृपा करो।
आरक्त-चरणाम्भोजे सिद्धि-सर्वार्थदायिके।
दिव्याम्बरधरे दिव्ये
दिव्यमाल्यानुशोभिते॥११॥
आपके चरण कमल लाल रंग के हैं, आप सभी सिद्धि और मनोरथ देने वाली हैं। आप दिव्य वस्त्र और दिव्य मालाओं से सुसज्जित हैं।
समस्तगुणसम्पन्ने सर्वलक्षणलक्षिते।
शरच्चन्द्रमुखे नीले नील नीरज
लोचने॥१२॥
आप सभी गुणों से युक्त और श्रेष्ठ लक्षणों वाली हैं। आपका मुख शरद ऋतु के चन्द्रमा जैसा है और आपकी आँखें नीलकमल जैसी सुंदर हैं।
चंचरीक चमू चारु श्रीहार कुटिलालके।
मत्ते भगवती मातः
कलकण्ठरवामृते॥१३॥
आपके बाल घुंघराले हैं, आप सुंदर श्रीहार पहने हैं, भ्रमरों की गूंज जैसी आपकी मधुर वाणी है; हे भगवती! आप मुझ पर प्रसन्न हों।
हासाऽवलोकनैर्दिव्यैर्भक्तचिन्तापहारिके।
रूप लावण्य तारूण्य कारूण्य
गुणभाजने॥१४॥
आपकी मुस्कान और दृष्टि दिव्य हैं, जो भक्तों की चिंताओं को हर लेती हैं। आप सौंदर्य, यौवन, और करुणा की साक्षात देवी हैं।
क्वणत्कंकणमंजीरे लसल्लीलाकराम्बुजे।
रुद्रप्रकाशिते तत्त्वे धर्माधरे
धरालये॥१५॥
आपके कंकण और पायल की ध्वनि मधुर है, आपके हाथों की लीलाएँ सुंदर हैं। आप रुद्र द्वारा प्रकट की गई तत्त्वस्वरूपा हैं, जो धर्म का आधार हैं।
प्रयच्छ यजमानाय धनं धर्मेकसाधनम्।
मातस्त्वं मेऽविलम्बेन दिशस्व
जगदम्बिके॥१६॥
हे जगदम्बा! मेरे यजमान को शीघ्र वह धन प्रदान करें जिससे वह धर्म का पालन कर सके।
कृपया करुरागारे प्रार्थितं कुरु मे शुभे।
वसुधे वसुधारूपे वसु वासव
वन्दिते॥१७॥
हे शुभस्वरूपा! हे पृथ्वी के रूप में स्थित देवी! वसुओं और इन्द्र द्वारा पूजित! कृपा करके मेरी प्रार्थना को स्वीकार करें।
धनदे यजमानाय वरदे वरदा भव।
ब्रह्मण्यैर्ब्राह्मणैः पूज्ये
पार्वतीशिवशंकरे॥१८॥
हे धन देने वाली देवी! यजमान को धन प्रदान करो। आप वर देने वाली हैं, ब्राह्मणों द्वारा पूज्य हैं और शिव-पार्वती की शक्ति हैं।
स्तोत्रं दरिद्रताव्याधिशमनं सुधनप्रदम्।
श्रीकरे शंकरे श्रीदे प्रसीद
मयिकिंकरे॥१९॥
यह स्तोत्र दरिद्रता और रोगों का नाश करने वाला और उत्तम धन देने वाला है। हे श्री (लक्ष्मी) और शंकर (शिव) की शक्ति! मुझ पर कृपा करें।
पार्वतीशप्रसादेन सुरेश किंकरेरितम्।
श्रद्धया ये पठिष्यन्ति
पाठयिष्यन्ति भक्तितः॥२०॥
यह स्तोत्र पार्वतीपति शिव के प्रसाद से देवताओं द्वारा कहा गया है। जो इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ेंगे या पढ़वाएँगे, वे लाभ पाएँगे।
सहस्रमयुतं लक्षं धनलाभो भवेद् ध्रुवम्
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय
च।
भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धन-धान्यादिसम्पदः॥२१॥
जो इसे बार-बार पढ़ेगा, उसे हजारों और लाखों की धन-संपत्ति निश्चित रूप से प्राप्त होगी। हे धन की देवी! तुम्हें प्रणाम है। तुम्हारी कृपा से मुझे धन-धान्य और सभी प्रकार की संपत्तियाँ प्राप्त हों।