श्री शिव बिल्वाष्टकम् अर्थ सहित (Shri Shiv Bilwashtakam Stotram)

श्रावण मास भगवान शिव की भक्ति और स्तुति के लिए सबसे पावन और श्रेष्ठ समय माना जाता है। इस पूरे महीने शिवालयों में लाखों-करोड़ों की संख्या में शिव भक्त बेल पत्र व अक्षत के साथ जल अर्पित करते हैं। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को भक्तों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है।
भगवान शिव को बिल्व पत्र अर्पित करते समय'बिल्वाष्टकम्' का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
शिव बिल्वाष्टकम्
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥१॥
त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रैः कोमलैश्शुभैः।
शिवपूजां करिष्यामि
एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥
अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥३॥
सालग्रामशिलामेकां जातु विप्राय योऽर्पयेत्।
सोमयज्ञमहापुण्यं एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥४॥
दन्तिकोटिसहस्राणि वाजपेयशतानि च।
कोटिकन्यामहादानां एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥५॥
पार्वत्यास्स्वेदतोत्पन्नं महादेवस्य च प्रियं।
बिल्ववृक्षं नमस्यामि
एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६॥
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनं।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥७॥
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।
अग्रतश्शिवरूपाय एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥८॥
बिल्वाष्टक मिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः
शिवलोकमवाप्नुयात् ॥९॥
॥ इति श्री बिल्वाष्टकम् सम्पूर्णं ॥
बिल्व (बेल) पत्र को त्रिदेवों का स्वरूप माना गया है- इसके तीन पत्ते ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक हैं। शिवपुराण में भी कहा गया है कि शिव लिंग पर बिल्वपत्र अर्पण करने से व्यक्ति के पाप क्षीण होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
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हिन्दी अर्थ
श्री शिव बिल्वाष्टकम् हिन्दी अर्थ सहित
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधं।
त्रिजन्मपापसंहारं एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥१॥
तीन दलवाला, सत्व, रज और तम: स्वरूप सूर्य, चंद्र तथा अग्नि त्रिनेत्र स्वरूप और आयुधत्रय स्वरूप तथा तीनों जन्मों के पापों को नष्ट करने वाला बिल्व पत्र मैं भगवान शिव के लिए समर्पित करता हूं॥
त्रिशाखैर्बिल्वपत्रैश्च ह्यच्छिद्रैः कोमलैश्शुभैः।
शिवपूजां करिष्यामि
एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥
छिद्र रहित, सुकोमल, तीन पत्ते वाले मंगल प्रदान करने वाले बिल्व पत्र से मैं भगवान शिव की पूजा करूंगा, यह बिल्व पत्र शिव को समर्पित करता हूं॥
अखण्डबिल्वपत्रेण पूजिते नन्दिकेश्वरे।
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥३॥
अखंड बेलपत्र से नंदिकेश्वर भगवान की पूजा करने पर मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाते हैं, मैं बेलपत्र शिव को समर्पित करता हूं॥
सालग्रामशिलामेकां जातु विप्राय योऽर्पयेत्।
सोमयज्ञमहापुण्यं एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥४॥
मेरे द्वारा किया गया भगवान शिव को यह बिल्व पत्र का समर्पण कदाचित ब्राह्मणों को शालिग्राम की शिला के समान तथा सोम यज्ञ के अनुष्ठान के समान महान पुण्यशाली हो तथा मैं बिल्व पत्र भगवान शिव को समर्पित करता हूं॥
दन्तिकोटिसहस्राणि वाजपेयशतानि च।
कोटिकन्यामहादानां एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥५॥
मेरे द्वारा किया गया भगवान शिव को यह बिल्व पत्र का समर्पण हजारों करोड़ गजदान, सैकड़ो वाजपेय यज्ञ-अनुष्ठान तथा करोड़ कन्याओं के महादान के समान हो॥ (अतः मैं बिल्व पत्र भगवान शिव को समर्पित करता हूं।)
पार्वत्यास्स्वेदतोत्पन्नं महादेवस्य च प्रियं।
बिल्ववृक्षं नमस्यामि
एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६॥
विष्णुप्रिया भगवती लक्ष्मी के वक्ष स्थल से प्रादुर्भूत तथा महादेव जी के अत्यंत प्रिय बिल्व वृक्ष को मैं समर्पित करता हूं, यह बिल्व पत्र भगवान शिव को समर्पित है॥
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनं।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥७॥
बिल्व वृक्ष का दर्शन और उसका स्पर्श समस्त पापों को नष्ट करने वाला तथा शिवापराध का संहार करने वाला है, यह बिल्वपत्र भगवान शिव को समर्पित है॥
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे।
अग्रतश्शिवरूपाय एकबिल्वं
शिवार्पणम् ॥८॥
बिल्व पत्र का मूलभाग ब्रह्मरूप, मध्य भाग विष्णुरूप एवं अग्रभाग शिवरूप है, ऐसा बिल्व पत्र भगवान शिव को समर्पित है॥
बिल्वाष्टक मिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
सर्वपापविनिर्मुक्तः
शिवलोकमवाप्नुयात् ॥९॥
जो भगवान शिव के समीप इस पुण्य प्रदान करने वाले बिल्वाष्टक का पाठ करता है, वह समस्त पापों से मुक्त होकर अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है॥