श्री रामचन्द्र अष्टकम् अर्थ सहित - अमरदास कृत (Shri Ramachandra Ashtakam)

श्री रामचन्द्र अष्टकम् एक प्रभावशाली स्तोत्र है जिसकी रचना भक्त अमरदास जी ने की थी। इस अष्टकम में कुल आठ श्लोकों के माध्यम से उन्होंने भगवान श्रीराम के दैवीय गुणों, साहस और आदर्श चरित्र का वर्णन किया है। इसका नियमित पाठ श्रद्धालुओं को श्रीराम की कृपा प्राप्ति होती है और उनके जीवन से निराशा, भय व कुंठा जैसे नकारात्मकता का नाश कर देता है।
श्री रामचन्द्राष्टकम्
चिदाकारो धातापरमसुखदः पावन-
तनुर्मुनीन्द्रैर्यो-गीन्द्रैर्यतिपतिसुरेन्द्रैर्हनुमता।
सदा
सेव्यः पूर्णोजनकतनयाङ्गः सुरगुरू
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु
सततम्॥१॥
मुकुन्दो गोविन्दोजनकतनयालालितपदः
पदं प्राप्तायस्याधमकुलभवा चापि शबरी।
गिरातीतोऽगम्योविमलधिषणैर्वेदवचसा
रमानाथो
रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥२॥
धराधीशोऽधीशःसुरनरवराणां रघुपतिः
किरीटी केयूरीकनककपिशः शोभितवपुः।
समासीनः
पीठेरविशतनिभे शान्तमनसो
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥३॥
वरेण्यः शारण्यःकपिपतिसखश्चान्तविधुरो
ललाटे काश्मीरोरुचिरगतिभङ्गः
शशिमुखः।
नराकारो रामोयतिपतिनुतः संसृतिहरो
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते
तु सततम्।॥४॥
विरूपाक्षः कश्यामुपदिशियन्नाम शिवदं
सहस्रं यन्नाम्नां पठतिगिरिजा
प्रत्युषसि वै।
स्वलोके गायन्तीश्वरविधिमुखायस्य चरितं
रमानाथो रामो
रमतुमम चित्ते तु सततम्॥५॥
परो धीरोऽधीरोऽसुरकुल-भवश्चासुरहरः
परात्मा सर्वज्ञोनरसुरगणैर्गीतसुयशाः।
अहल्याशापघ्नःशरकरऋजुः
कौशिकसखो
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥६॥
हृषीकेशः शौरिर्धरणि-धरशायी मधुरिपु-
रुपेन्द्रोवैकुण्ठोगजरिपुहरस्तुष्टमनसा।
बलिध्वंसी
वीरोदशरथसुतो नीतिनिपुणो
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥७॥
कविः सौमित्रीड्यःकपटमृगघाती वनचरो
रणश्लाघी दान्तोधरणिभरहर्ता सुरनुतः।
अमानी
मानज्ञोनिखिलजनपूज्यो हृदिशयो
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥८॥
इदं रामस्तोत्रंवरममरदासेन रचितमुषः
काले भक्त्या यदिपठति यो
भावसहितम्।
मनुष्यः स क्षिप्रंजनिमृतिभयं तापजनकं
परित्यज्य
श्रेष्ठंरघुपतिपदं याति शिवदम्॥९॥
॥ इति श्रीमद्रामदासपूज्यपादशिष्य श्रीमद्धंसदासशिष्येणामरदासाख्यकविना विरचितं श्रीरामचन्द्राष्टकं समाप्तम् ॥
हिन्दी अर्थ
श्री रामचन्द्र अष्टकम् हिन्दी अर्थ सहित
चिदाकारो धातापरमसुखदः पावन-
तनुर्मुनीन्द्रैर्यो-गीन्द्रैर्यतिपतिसुरेन्द्रैर्हनुमता।
सदा
सेव्यः पूर्णोजनकतनयाङ्गः सुरगुरू
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु
सततम्॥१॥
जो ज्ञानस्वरूप हैं, जगत को धारण और पोषण करने वाले हैं, परमसुख के दाता हैं, जिनका शरीर सबको पवित्र करने वाला है, मुनीन्द्र, योगीन्द्र, यतीश्वर, देवेश्वर और श्री हनुमान् जिनकी सदा सेवा करते हैं, जो पूर्ण हैं, सीताजी जिनकी अर्धांगिनी हैं, जो देवताओ के भी गुरु हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्री रामचंद्र जी मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥०१॥
मुकुन्दो गोविन्दोजनकतनयालालितपदः
पदं प्राप्तायस्याधमकुलभवा चापि
शबरी।
गिरातीतोऽगम्योविमलधिषणैर्वेदवचसा
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते
तु सततम्॥२॥
जो मुकुन्द, गोविन्द नाम से कहे जाते हैं, सीताजी ने जिनके चरणों का लालन किया है, जिनका भजन करने से नीच कुल में उत्पन्न शबरी भी जिनके परमधाम को प्राप्त हो गयी, जो विमल बुद्धि वालों की भी वाणी से परे हैं ओर वेदो की वचन से भी अगम्य हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्रजी मेरे चित्त में सदा रमन करें ॥०२॥
धराधीशोऽधीशःसुरनरवराणां रघुपतिः
किरीटी केयूरीकनककपिशः शोभितवपुः।
समासीनः
पीठेरविशतनिभे शान्तमनसो
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥३॥
जो पृथ्वी के अधीश्वर हैं, श्रेष्ठ देवताओं ओर मनुप्यो के भी स्वामी हैं, रघुकुल के नाथ हैं, जिन्होंने सिर पर मुकुट ओर बाहुओ में केयूर धारण किये हैं, जो सोने के समान पीतवर्णं के वस्र पहने हए हैं, जिनका शरीर शोभित हो रहा है और जो सैकड़ों सूर्य के समान देदीप्यमान सिंहासन पर बैठे हुए हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचनद्र जी शान्त हृदय वाले मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥०३॥
वरेण्यः शारण्यःकपिपतिसखश्चान्तविधुरो
ललाटे काश्मीरोरुचिरगतिभङ्गः
शशिमुखः।
नराकारो रामोयतिपतिनुतः संसृतिहरो
रमानाथो रामो रमतुमम
चित्ते तु सततम्।॥४॥
जो श्रेष्ठ हैं, शरण देने वाले हैं, सुग्रीव के मित्र है, अन्त से रहित है, जिनके ललाट में केसर का तिलक है, जिनकी चाल अतिसुन्दर है, मुखारविन्द चनद्रमा के समान आनन्ददायी है, जो मनुष्यरूप में प्रतीत होने पर भी राम (योगियोके ध्येय परब्रह्म) हैं, * यतीश्वरगण जिनकी स्तुति करते है, जो जन्म-मृत्युरूप संसार के हरने वाले हैं; वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥०४॥
विरूपाक्षः कश्यामुपदिशियन्नाम शिवदं
सहस्रं यन्नाम्नां पठतिगिरिजा
प्रत्युषसि वै।
स्वलोके गायन्तीश्वरविधिमुखायस्य चरितं
रमानाथो रामो
रमतुमम चित्ते तु सततम्॥५॥
काशी में भगवान् शंकर जिनके कल्याणप्रद नाम का उपदेश करते हैं, श्रीपार्वतीजी प्रतिदिन प्रभात-काल में जिनके सहस्र -नाम का पाठ करती हैं, शिव, ब्रह्मा आदि (देवगण) अपने-अपने लोकों में जिनके दिव्य चरित्र का गान करते हैं, वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥०५॥
परो धीरोऽधीरोऽसुरकुल-भवश्चासुरहरः
परात्मा
सर्वज्ञोनरसुरगणैर्गीतसुयशाः।
अहल्याशापघ्नःशरकरऋजुः कौशिकसखो
रमानाथो
रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥६॥
जो अत्यन्त धीर होकर भी अधीर (अविद्याको दूर करने वाले) हैं, सूर्य के कुल में उत्पन्न होकर असुरों का संहार करने वाले हैं, जो परमात्मा हैं, सर्वज्ञ हैं, मनुष्य तथा देवतागण जिनके सुयश का गान करते हैं, जिन्होने अहल्या के शाप का नाशा किया, जिनके हाथ में बाण शोभित हैं, जो सरल स्वभाव वाले ओर विश्वामित्र के मित्र हैं, वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥०६॥
हृषीकेशः शौरिर्धरणि-धरशायी मधुरिपु-
रुपेन्द्रोवैकुण्ठोगजरिपुहरस्तुष्टमनसा।
बलिध्वंसी
वीरोदशरथसुतो नीतिनिपुणो
रमानाथो रामो रमतुमम चित्ते तु सततम्॥७॥
जो हृषिकेश, शौरी, शेषशायी, मधुसूदन, उपेन्द्र, वैकुण्ठ आदि नाम से कहे जाते हैं, जिन्होंने प्रसन्न होकर गजराज के शत्रु का नाश किया, जो बलि को पदच्युत करने वाले हैं, जो वीर हैं, वे नीतिनिपुण, लक्ष्मीपति, दशरथनन्दन, भगवान् श्री रामचंद्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥०७॥
कविः सौमित्रीड्यःकपटमृगघाती वनचरो
रणश्लाघी दान्तोधरणिभरहर्ता
सुरनुतः।
अमानी मानज्ञोनिखिलजनपूज्यो हृदिशयो
रमानाथो रामो रमतुमम
चित्ते तु सततम्॥८॥
जो त्रिकालदर्शी हैं, लक्ष्मण जी के पूज्य हैं, जिन्होंने वन में भ्रमण करते हुए मायामृग मारीच का वध किया है, जो युद्धप्रिय हैं, दान्त (मन ओर इन्द्रियों का दमन करने वाले) हैं, पृथ्वी के भार को हरने वाले तथा देवताओं से स्तुत हैं, जो स्वयं मानरहित होकर दूसरो के सम्मान के ज्ञाता (कृतज्ञ) हैं, सब लोगो के पूज्य हैं, सबके हदय में निवास करने वाले हैं, वे लक्ष्मीपति भगवान् श्रीरामचन्द्र मेरे चित्त में सदा रमण करें ॥०८॥
इदं रामस्तोत्रंवरममरदासेन रचितमुषः
काले भक्त्या यदिपठति यो
भावसहितम्।
मनुष्यः स क्षिप्रंजनिमृतिभयं तापजनकं
परित्यज्य
श्रेष्ठंरघुपतिपदं याति शिवदम्॥९॥
जो मनुष्य प्रातःकाल भक्ति और श्रद्धा के साथ अमरदास कवि के बनाये हुए इस सुन्दर रामस्तोत्र का पाठ करेगा, वह बहुत शीघ्र ही तापजनक जन्म-मृत्यु के भय का परित्याग कर श्रेष्ठ तथा कल्याणप्रद रघुनाथ के पद को प्राप्त करेगा ॥०९॥