श्री काशी विश्वनाथ अष्टकम अर्थ सहित (Shri Kashi Vishwanath Ashtakam)

श्री काशी विश्वनाथ अष्टकम, जिसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। कहा जाता है कि जब आद्य शंकराचार्य पहली बार काशी आए थे, तब उन्होंने भगवान काशी विश्वनाथ की स्तुति इसी अष्टक से की थी। यह स्तोत्र न केवल भगवान शिव की भक्ति करने का माध्यम है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि हमारे शरीर में ही काशी है और आत्मा के रूप में स्वयं भगवान विश्वनाथ विराजमान हैं।
श्री काशीविश्वनाथाष्टकम्
गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥१॥
वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम्।
वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥२॥
भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं
व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम्।
पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥३॥
शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम्।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥४॥
पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम्।
दावानलं
मरणशोकजराटवीनां
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥५॥
तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं
आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम्।
नागात्मकं
सकलनिष्कलमात्मरूपं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥६॥
रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम्।
माधुर्यधैर्यसुभगं
गरलाभिरामं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥७॥
आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ।
आदाय
हृत्कमलमध्यगतं परेशं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥८॥
॥ फलश्रुति ॥
वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते
मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्य देहविलये
लभते च मोक्षम्॥
विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥
॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
श्री काशी विश्वनाथ अष्टकम के अन्य वीडियो
हिन्दी अर्थ
काशी विश्वनाथ अष्टकम् हिन्दी अर्थ सहित
गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥१॥
हे प्रभु! जिनकी जटाएं गंगा जी की लहरों से सुंदर प्रतीत होती है, जिनका बायां भाग हमेशा सार्वभौमिक शक्ति यानी देवी गौरी से सुशोभित है, जो नारायण के प्रिय होने के साथ ही कामदेव के मद का नाश करने वाले हैं, उन वाराणसी के स्वामी अर्थात् काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम्।
वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥२॥
हे प्रभु! जिनका वर्णन वाणी से नहीं हो सकता, जिनके अनेक गुण और अनेक स्वरूप हैं, ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवता जिनकी सेवा करते हैं, जिनका बाईं ओर उनकी पत्नी यानी पार्वती के विराजमान होने से सुंदर प्रतीत होता है, मैं उन काशीपति विश्वनाथ को प्रणाम करता हूं।
भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं
व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम्।
पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥३॥
हे प्रभु! जो भूतों के अधिपति हैं, जिनका शरीर सर्प रूपी गहनों से विभूषित है और जो बाघ की खाल का वस्त्र पहनते हैं। जिनके हाथों में पाश, अंकुश, अभय, वर और शूल है, उन जटाधारी त्रिनेत्र काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम्।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं
वाराणसीपुरपतिं
भज विश्वनाथम्॥४॥
हे प्रभु! जो चन्द्रमा द्वारा प्रकाशित मुकुट से सुशोभित हैं, जिन्होंने अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया, जिनके कानों में बड़े-बड़े सांपों के कुंडल चमक रहे हैं। उन काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम्।
दावानलं
मरणशोकजराटवीनां
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥५॥
हे प्रभु! जो पाप रूपी मतवाले हाथियों को मारने वाले सिंह है, दैत्य समूह रूपी सांपों का नाश करने वाले गरुड़ हैं और जो मृत्यु, शोक और वृद्धावस्था के दुखों को जलाने वाले दावानल हैं, ऐसे काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं
आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम्।
नागात्मकं
सकलनिष्कलमात्मरूपं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥६॥
हे प्रभु! जो तेजपूर्ण, सगुण, निर्गुण, अद्वितीय, आनन्दकन्द, अपराजित और अतुलनीय हैं, जो अपने शरीर पर सांपों को धारण करते हैं, जिनका रूप आत्मा में विलीन है, ऐसे आत्मस्वरूप काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम्।
माधुर्यधैर्यसुभगं
गरलाभिरामं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥७॥
हे प्रभु! जो लालसा से रहित हैं, अपने भक्तों पर कृपा रखते हैं, जो वैराग्य और शांति के स्थान हैं, पार्वती जी सदा जिनके साथ रहती हैं, जो धीरता और मधुर स्वभाव से सुंदर दिखते हैं और जो कंठ में विष को धारण किए हुए हैं, उन काशीपति विश्वनाथ मैं प्रणाम करता हूं।
आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ।
आदाय
हृत्कमलमध्यगतं परेशं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्॥८॥
सब आशाओं को छोड़कर, दूसरों की निंदी त्याग कर और पाप-कर्म से अनुराग हटाकर, चित्त को समाधि में लगाकर, हृदय कमल में प्रकाशमान परमेश्वर काशीपति विश्वनाथ को मैं प्रणाम करता हूं।
॥ फलश्रुति ॥
वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते
मनुष्यः।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्य देहविलये
लभते च मोक्षम्॥
जो मनुष्य काशीपति शिव के इस आठ श्लोकों के स्तवन का पाठ करता है। वह विद्या, धन और अनंत कीर्ति प्राप्त कर मृत्यु के बाद मोक्ष भी प्राप्त कर लेता है।
विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह
मोदते॥
जो शिव के समीप इस बैठ इस विश्वनाथाष्टक का पाठ करता है, वह शिवलोक को प्राप्त करता और शिव के साथ आनंदित होता है।