गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम (Ganesh Dwadash Stotram)

Ganesh Dwadashanaam Stotram 11 Times With Lyrics

गणेश द्वादश नाम स्तोत्रम् एक शक्तिशाली मंत्र है जिसमें भगवान श्री गणेश के बारह पावन नामों का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र साधक के जीवन में मंगल, समृद्धि और सफलता लाने वाला माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इसका नियमित पाठ करने से (विशेष रूप से बुधवार या गुरुवार को) हर प्रकार की बाधाओं को दूर करता है और शुभ फल प्रदान करता है।

श्री गणेशद्वादशनामस्तोत्रम्

॥ श्रीगणेशाय नम: ॥

शुक्लांम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशांतये ॥१॥

अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजेतो य: सुरासुरै:।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नम: ॥२॥

गणानामधिपश्चण्डो गजवक्त्रस्त्रिलोचन:।
प्रसन्न भव मे नित्यं वरदातर्विनायक ॥३॥

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक: ॥४॥

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामानि गणेशस्य य: पठेत् ॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी विपुलं धनम्।
इष्टकामं तु कामार्थी धर्मार्थी मोक्षमक्षयम् ॥६॥

विद्यारभ्मे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामे संकटेश्चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥७॥

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Ganesh Dwadash Naam Stotram

हिन्दी अर्थ

गणेश द्वादश नाम स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित

शुक्लांम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम्।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशांतये ॥१॥

जो श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, जिनका शरीर चन्द्रमा के समान उज्ज्वल है, जो चार भुजाओं वाले हैं और जिनका मुख सदा प्रसन्न रहता है, सभी विघ्नों की शांति के लिए ऐसे भगवान गणेश का ध्यान करना चाहिए।

अभीप्सितार्थसिद्ध्यर्थं पूजेतो य: सुरासुरै:।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नम: ॥२॥

जिनकी पूजा देवता और असुर दोनों अपने मनवांछित कार्य की सिद्धि के लिए करते हैं, जो सभी विघ्नों को हरने वाले हैं। उन गणों के अधिपति श्री गणेश को नमस्कार है।

गणानामधिपश्चण्डो गजवक्त्रस्त्रिलोचन:।
प्रसन्न भव मे नित्यं वरदातर्विनायक ॥३॥

जो गणों के स्वामी हैं, जिनका रूप बलशाली है, जो हाथी के मुख वाले हैं और तीन नेत्रों से युक्त हैं। हे वरदान देने वाले विनायक! आप सदा मुझ पर प्रसन्न रहें।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक: ॥४॥

सुमुख (सुंदर मुख वाले), एकदंत (एक ही दांत वाले), कपिल (ताम्रवर्ण या भूरे रंग वाले), गजकर्णक (हाथी जैसे बड़े कानों वाले), लम्बोदर (बड़े पेट वाले), विकट (भयंकर रूप वाले), विघ्ननाश (विघ्नों को नष्ट करने वाले), और विनायक (नेता)।

धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचंद्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामानि गणेशस्य य: पठेत् ॥५॥

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी विपुलं धनम्।
इष्टकामं तु कामार्थी धर्मार्थी मोक्षमक्षयम् ॥६॥

धूम्रकेतु (धुएँ के समान ध्वज वाले), गणाध्यक्ष (गणों के प्रमुख), भालचंद्र (माथे पर चंद्रमा धारण करने वाले), गजानन (हाथी के समान मुख वाले), भगवान गणेश के इन बारह नामों को जो कोई श्रद्धा से पढ़ता है। तो विद्या चाहने वाले को विद्या, धन की इच्छा रखने वाले को बहुत धन, इच्छा की पूर्ति चाहने वाले को इच्छित फल, और धर्म की कामना रखने वाले को अविनाशी मोक्ष प्राप्त होता है।

विद्यारभ्मे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा
संग्रामे संकटेश्चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥७॥

विद्या के आरम्भ में, विवाह के समय, घर में प्रवेश करते और निकलते समय, युद्ध में तथा संकट की घड़ी में - जो इन नामों का पाठ करता है, उसके कार्यों में कोई विघ्न उत्पन्न नहीं होता।

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