कर्ता करे न कर सके, शिव करे सो होय (Karta Kare Na Kar Sake Shiv Kare So Hoye)

Karta Kare Na Kar Sake Shiv Kare So Hoye

कर्ता करे न कर सके,
शिव करे सो होय।
तीन लोक नौ खंड में,
शिव से बड़ा न कोय॥

मानव प्रयास सीमित है, पर शिव की इच्छा सर्वोपरि है। क्यूंकी तीनों लोक और नौ खंडो में शिव से शक्तिशाली कोई नहीं है।

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Karta kare Na Kar Sake
Karta kare Na Kar Sake Lyrics Image in Hindi Text

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कर्ता करे न कर सके, शिव करे सो होय

एक समय की बात है राजस्थान में सूखा पड़ा हुआ था, जमीन पानी के बिना दरक चुकी थी। पशु-पक्षी पानी की तलाश में इधर उधर भटकते थे। वहीं पर एक गाँव में मोहन नाम का लड़का छोटी सी झोपड़ी में रहता था, उसके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी। पिता की मृत्यु साँप के काटने से और माता की मृत्यु टीबी से हो गयी थी। वह बेचारा अकेले झोपड़ी में रहता था।

मोहन दिनभर मज़दूरी करता, पर कमाई इतनी कि पेट भरना भी मुश्किल। एक दिन, जब साहूकार ने उसकी झोपड़ी ज़ब्त करने की धमकी दी, तो मोहन टूट गया। उसने सोचा, "अब जीने का क्या ही मतलब है?"

जब मोहन काम से वापस आ रहा था, वहीं रास्ते में पुराना शिव मंदिर भी पड़ता था। मोहन वहीं बैठ गया और मन ही मन बोलेनथ से कहने लगा "हे महादेव, मैंने इतनी मेहनत की... दिन-रात काम किया... फिर भी क्यों मेरी ज़िंदगी इतनी बेरहम है? अगर तू है, तो मुझे बता... मैं क्या करूँ?"

इतना कहते ही, मंदिर का घंटा बिना हवा के बज उठा। मोहन की रूह काँप गई।

थका हुआ मोहन मंदिर में ही सो गया। आधी रात को उसे एक सपना आया: एक साधु, जिनके माथे पर चंदन का तिलक और हाथ में टूटा कमंडल था, उससे बोले, "माँ-बाप के जिस खेत को तू शापित समझता है, वहाँ तेरा भाग्य छुपा है। खुदाई कर, और जो मिले, उसे गाँव वालों को दिखा।"

मोहन ने सुबह उठते ही फावड़ा लिया और खेत की तरफ चल दिया। पसीना बहाते-बहाते जब उसने दो फीट नीचे खोदा, तो फावड़े को किसी पत्थर से टक्कर लगी। मिट्टी हटाई, तो एक चमकता शिवलिंग नज़र आया! यह कोई साधारण शिवलिंग नहीं था... उसके साथ ही वहाँ बहुत सारा धन भी छुपा हुआ था।

जैसे ही गाँव वालों ने शिवलिंग निकलने की बात सुनी सब मोहन के खेत की तरफ दौड़े चले आए। गाँव के बुजुर्गों ने बताया कि ये शिवलिंग सैकड़ों साल पुराना है, और ऐसी मान्यता है कि जहाँ यह होता है, वहाँ धन की देवी लक्ष्मी स्वयं आती हैं। गाँव के लोगों ने मिलकर वहाँ एक भव्य मंदिर बनवाया। धीरे-धीरे यह स्थान तीर्थ बन गया। भक्तों के चढ़ावे से मोहन मंदिर की देखभाल करता और गरीबों को भोजन खिलाता।

कुछ समय बाद उसने मंदिर के पास ही एक धर्मशाला और आश्रम भी बनवाया। जहां गरीबों को भोजन और निराश्रित लोगों को आश्रय मिलता था। मोहन का जीवन भगवान शिव की कृपा से खुशहाल और धन्य हो गया।

मोहन आज भी सभी भक्तों से कहता नहीं थकता है। शिव उस माली की तरह हैं, जो मुरझाए हुए फूल को भी खिला देते हैं। वे नहीं देखते कि तुम कौन हो, बस देखते हैं कि तुम्हारा विश्वास और शृद्धा कितनी शुद्ध है।

"शिव वो सागर हैं, जिसमें गिरकर एक बूँद भी अमृत बन जाती है।"इसलिए जब भी कोई संकट आए तो 'ॐ नमः शिवाय' कहकर भगवान शिव को अवश्य याद करें।

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