सम्पूर्ण कार्तिक मास माहात्म्य की कथाएँ (Complete Kartik Maas Mahatmya Ki Katha)

कार्तिक माह का माहात्म्य
एक बार ब्रह्मा जी ने नारद मुनि से कहा, “हे नारद! कार्तिक मास भगवान श्रीविष्णु को अत्यंत प्रिय है। इस पवित्र मास में जो भी पुण्यकर्म भगवान के सुमिरन के साथ किए जाते हैं, वे अवश्य ही फलदायक होते हैं। सभी योनियों में मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ और दुर्लभ बताया गया है, अतः प्रत्येक मनुष्य को इस पावन मास में धर्म और पुण्य कार्यों में संलग्न होना चाहिए, क्योंकि इस मास में समस्त देवगण पृथ्वी पर विचरण करते हुए मनुष्य के समीप उपस्थित रहते हैं।”
इस मास में देवता स्वयं मनुष्य द्वारा किए गए पवित्र स्नान, व्रत, वस्त्र, अन्न, चांदी, स्वर्ण, भूमि आदि के दान को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करते हैं। इनमें अन्नदान को विशेष महत्व प्राप्त है, क्योंकि यह समस्त पापों का नाश करने वाला कहा गया है। कार्तिक मास में यदि कोई व्यक्ति किसी मनोकामना से दान करता है, तो वह उसे अक्षय स्वरूप में प्राप्त होता है।
यदि कोई व्यक्ति दान देने में असमर्थ हो, तो उसे प्रतिदिन भगवान का स्मरण करना चाहिए। गंगाजल से या गंगा जी में स्नान करना चाहिए। पूरे महीने कार्तिक मास महात्म्य की कथाओं का पाठ या श्रवण करना चाहिए। ऐसा करने से भी उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस पवित्र मास में भगवान को प्रसन्न करने हेतु किसी भी मंदिर में जाकर भजन-कीर्तन करना चाहिए, स्वयं दीपदान करें अथवा दूसरों द्वारा प्रज्वलित दीप की रक्षा करें। भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए तुलसी एवं आँवले के वृक्ष का पूजन भगवद् भाव से करें, क्योंकि इन्हें भगवान का ही स्वरूप माना गया है।
जो व्यक्ति कार्तिक मास में भूमि पर सोता है, उसके समस्त जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही यदि कोई प्रातःकाल अरुणोदय से पूर्व जागरण करके गंगास्नान करता है, तो उसके करोड़ों जन्मों के पाप धुल जाते हैं।
प्रतिदिन भगवान के इस पावन नाम का कीर्तन अवश्य करें-
गोविन्द गोविन्द हरे मुरारे,
गोविन्द गोविन्द मुकुन्द कृष्ण।
गोविन्द गोविन्द रथांगपाणे,
गोविन्द दामोदर माधवेति॥
कार्तिक मास में श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करने से बड़ा कोई पुण्य कार्य नहीं है। जितना फल सातों समुद्रों तक की पृथ्वी दान करने से प्राप्त होता है, उतना ही फल इस माह में स्नान और दान से प्राप्त होता है। इसलिए कहा गया है कि इस मास में अन्नदान सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि समस्त सृष्टि अन्न पर ही आश्रित है।
कार्तिक मास में दीपदान का महत्व