रवि प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा और महात्म्य (Ravi Pradosh Vrat Katha)

Ravi Pradosh Vrat Katha in Hindi: रवि प्रदोष व्रत, जो कि त्रयोदशी तिथि और रविवार के संयोग पर रखा जाता है, भगवान शिव की उपासना का अत्यंत पुण्यदायी अवसर होता है। यह व्रत विशेष रूप से तब रखा जाता है जब प्रदोष तिथि रविवार को पड़ती है, तब इसे 'रवि प्रदोष व्रत' कहा जाता है।

Ravi Pradosh Vrat Katha

मान्यता है कि इस व्रत में इस कथा का श्रवण और पूजन करने से जीवन के समस्त कष्ट दूर होते हैं तथा भगवान शिव की कृपा से सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है। प्रदोष व्रत हर मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को आता है, लेकिन जब यह रविवार को हो, तब इसका महात्म्य और भी अधिक बढ़ जाता है।

रवि प्रदोष व्रत का माहात्म्य

एक समय, समस्त प्राणियों के कल्याण हेतु परम पावन भागीरथी के तट पर ऋषियों द्वारा एक विशाल गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस ज्ञानमयी सभा में जब व्यासजी के परम शिष्य और पुराणों के प्रकाण्ड विद्वान श्री सूतजी महाराज हरि कीर्तन करते हुए पधारे, तो शौनक आदि अठ्ठासी हजार ऋषि-मुनियों ने उन्हें आदरपूर्वक खड़े होकर दण्डवत प्रणाम किया।

सूतजी ने भक्ति भाव से समस्त ऋषियों को हृदय से लगाया और आशीर्वाद प्रदान किया। तत्पश्चात सभी मुनिगण और शिष्यगण अपने-अपने आसनों पर विराजमान हो गए।

तब मुनिगण विनम्रतापूर्वक पूछने लगे -

“हे परम कृपालु! कृपया यह बताइए कि कलियुग में भगवान शंकर की भक्ति किस प्रकार की आराधना से सुलभ होगी? कलियुग में प्राणी पापकर्म में लिप्त होकर वेद-शास्त्रों से विमुख हो जाएंगे। लोग दुःखों से पीड़ित रहेंगे और सत्कर्म में रुचि नहीं रखेंगे। पुण्य क्षीण होने पर मनुष्य की बुद्धि स्वयमेव दुष्कर्मों की ओर प्रेरित होगी, जिससे दुष्ट प्रवृत्ति के लोग अपने वंश सहित नष्ट हो जाएंगे।

जो ज्ञानी होते हुए भी ज्ञान का प्रचार नहीं करता, उस पर परमेश्वर प्रसन्न नहीं होते। अतः हे महामुने! कृपया ऐसा कोई श्रेष्ठ व्रत बताइए जिससे मनवांछित फल की प्राप्ति हो सके।”

यह सुनकर कृपालु सूतजी कहने लगे -

"हे शौनक तथा अन्य मुनि श्रेष्ठों! आप धन्य हैं। आपके विचार अत्यंत सराहनीय हैं क्योंकि आपके हृदय में सदा लोककल्याण की भावना विद्यमान है। अतः मैं वह व्रत बताने जा रहा हूँ, जिससे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं, धन-संपत्ति, संतान, सुख, आरोग्यता एवं मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।"

"यह वही व्रत है जिसे भगवान शंकर ने देवी सती को सुनाया था और जिसे मेरे पूज्य गुरु ने मुझसे कहा था। अब शुभ समय देखकर मैं आपको यह व्रत बताता हूँ। बोलिए उमापति शंकर भगवान की जय!"

प्रदोष व्रत की विधि

सूतजी बोले —

"आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति हेतु त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करें। इस व्रत की विधि इस प्रकार है:

प्रातः स्नान कर, निराहार रहकर, शिव का ध्यान करें। निकट के शिव मंदिर जाकर भक्ति भाव से भगवान शंकर की पूजा करें।

पूजन में त्रिपुण्ड का तिलक लगाकर, बेलपत्र, धूप, दीप, अक्षत, फल आदि अर्पित करें। 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का रुद्राक्ष माला से जप करें।

ब्राह्मण को भोजन कराएं और सामर्थ्यानुसार दक्षिणा दें। सत्य वचन बोलें और हवन भी करें।

मौन व्रत धारण करें तथा "ॐ ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा" मंत्र से हवन में आहुति दें। इससे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।

व्रती को पृथ्वी पर शयन करना चाहिए और दिन में केवल एक बार भोजन करना चाहिए। विशेषतः श्रावण मास में इस व्रत का अधिक महत्व है। यह व्रत सभी प्रकार के सुख, आरोग्यता और धन की प्राप्ति कराने वाला है।"

रवि प्रदोष व्रत कथा

शौनकादि ऋषि बोले - “हे पूज्यवर! आपने यह गोपनीय, मंगलकारी और दुःख निवारक व्रत बताया। कृपया यह भी बताइए कि किसने यह व्रत किया और उसे क्या फल प्राप्त हुआ?”

सूतजी बोले - “हे विचारशील मुनियों! मैं आपको एक व्रती ब्राह्मण परिवार की कथा सुनाता हूँ।"

रवि प्रदोष व्रत की कथा के अनुसार एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो।

बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहां है? तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?

बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं। यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।

ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा।

प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया। उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को पांच गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें।

भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा। अत: जो मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है तथा उसके जीवन में खुशहाली आती है। 

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