सोमवती अमावस्या व्रत कथा (Somvati Amavasya Vrat Katha)
Somvati Amavasya Vrat Katha: सोमवती अमावस्या का दिन भगवान शिव की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि इस पावन तिथि पर व्रत रखने और विधिपूर्वक कथा सुनने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है। विशेषकर महिलाओं के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है। इस दिन शिव पूजन के साथ सोमवती अमावस्या की व्रत कथा का श्रवण या पाठ अवश्य करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य बना रहे।

सोमवती अमावस्या व्रत कथा
कहानी के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण परिवार था। उस परिवार में पति-पत्नी और उनकी एक कन्या रहती थी। समय बीतने के साथ वह कन्या धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उसमें सभी स्त्रियोचित गुण - सुंदरता, संस्कार और विनम्रता - का विकास होने लगा। वह अत्यंत गुणवान एवं सुंदर थी, किंतु निर्धनता के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था।
एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारे। साधु महाराज उस कन्या के सेवाभाव से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने उसे दीर्घायु का आशीर्वाद दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इस कन्या की हथेली में विवाह रेखा नहीं है।
यह सुनकर ब्राह्मण दंपति चिंतित हो उठे। उन्होंने साधु से इसका उपाय पूछा - कि ऐसी कौन-सी विधि है जिससे कन्या का विवाह संभव हो सके। साधु ने थोड़ी देर ध्यान लगाकर अंतर्दृष्टि से बताया कि पास ही के एक गांव में "सोना" नामक एक धोबिन अपने पुत्र और बहू के साथ रहती है। वह अत्यंत संस्कारवान, पतिव्रता और धार्मिक महिला है।
यदि यह कन्या उस सोना धोबिन की सेवा करे, और वह महिला अपनी मांग का सिंदूर इस कन्या की मांग में लगा दे तथा उसके बाद इस कन्या का विवाह हो जाए, तो उसका वैधव्य योग समाप्त हो सकता है। साधु ने यह भी कहा कि वह धोबिन घर से बाहर नहीं निकलती।
यह सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी पुत्री को उस धोबिन की सेवा करने को कहा। अगले ही दिन से कन्या प्रतिदिन सुबह-सवेरे उठकर सोना धोबिन के घर जाकर सफाई और अन्य काम निःस्वार्थ भाव से करने लगी।
कुछ दिनों बाद सोना धोबिन ने अपनी बहू से पूछा, "तू तो कहती है कि सारे काम मैं करती हूँ, पर ये तो पहले से ही पूरे हो जाते हैं। ये कौन करता है?"
बहू ने उत्तर दिया, "माँ जी, मैं तो सोचती थी कि आप ही सुबह-सुबह उठकर सब कर देती हैं, मैं तो देर से उठती हूँ।"
इसके बाद सास-बहू ने यह जानने की ठानी कि यह काम करने वाला कौन है। कई दिनों की निगरानी के बाद उन्होंने देखा कि एक कन्या मुंह ढके हुए अंधेरे में घर आती है, चुपचाप सब काम करती है और चली जाती है।
एक दिन जब वह जाने लगी, तब सोना धोबिन उसके पैरों में गिर पड़ी और बोली, "बेटी, तुम कौन हो? और इस तरह छिपकर हमारे घर के काम क्यों करती हो?"
तब कन्या ने साधु द्वारा कही गई पूरी बात उसे बता दी। सोना धोबिन पतिव्रता थी और उसमें तेज था। उसने तुरंत अपनी सहमति दी। हालांकि उसका पति उस समय अस्वस्थ था, फिर भी उसने अपनी बहू को घर पर रहने का कहकर स्वयं उस कन्या के साथ निकल पड़ी।
जैसे ही सोना धोबिन ने अपनी मांग का सिंदूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसी क्षण उसे ज्ञान हुआ कि उसके पति का निधन हो गया है। वह घर से निराजल ही चली थी, यह सोचकर कि यदि रास्ते में पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर, परिक्रमा करके ही जल ग्रहण करेगी।
संयोग से उस दिन सोमवती अमावस्या थी। ब्राह्मण के घर से प्राप्त पूए-पकवानों की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी दी, और 108 बार पीपल वृक्ष की परिक्रमा की। इसके बाद उसने जल ग्रहण किया।
जैसे ही यह व्रत पूर्ण हुआ, चमत्कार हुआ - उसके मृत पति के शरीर में फिर से प्राण लौट आए और वह जीवित हो गया।