श्रीराम प्रेमाष्टकम् अर्थ सहित (Shri Ram Prem Ashtakam)

श्रीराम प्रेमाष्टकम्, जिसकी रचना महान भक्त यामुनाचार्य जी ने की थी। यह अष्टक श्रीराम के प्रति गहन प्रेम और भक्ति को दर्शाता है। इसका नियमित पाठ करने से जीवन की कठिनाइयाँ स्वतः दूर होने लगती हैं और साधक को दुख, कष्ट, रोग, संकट और अन्य नकारात्मकताओं से मुक्ति मिलने लगती है।
श्रीराम प्रेमाष्टकम्
श्यामाम्बुदाभमरविन्दविशालनेत्रं
बंधूकपुष्पसदृशाधरपाणिपादम्।
सीतासहायमुदितं धृतचापबाणं
रामं
नमामि शिरसा रमणीयवेषम्॥१॥
पटुजलधरधीरध्वानमादाय चापं
पवनदमनमेकं बाणमाकृष्य तूणात्।
अभयवचनदायी
सानुज: सर्वतो मे
रणहतदनुजेन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥२॥
दशरथकुलदीपोऽमेयबाहुप्रतापो
दशवदनसकोप: क्षालिताशेषपाप:।
कृतसुररिपुतापो
नन्दितानेकभूपो
विगततिमिरपंको रामचन्द्र: सहाय:॥३॥
कुवलयदलनील: कामितार्थप्रदो मे
कृतमुनिजनरक्षो रक्षसामेकहन्ता।
अपह्रतदुरितोऽसौ
नाममात्रेण
पुंसामखिलसुरन्रपेन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥४॥
असुरकुलकृशानुर्मानसाम्भोजभानु:
सुरनरनिकराणामग्रणीर्मे रघूणाम्।
अगणितगुणसीमा
नीलमेघौघधामा
शमदमितमुनीन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥५॥
कुशिकतनययागं रक्षिता लक्ष्मणाढय:
पवनशरनिकायक्षिप्तमारीचमाय:।
विदलितहरचापो
मेदिनीनन्दनाया
नयनकुमुदचन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥६॥
पवनतनयहस्तन्यस्तपादाम्बुजात्मा
कलशभववचोभि: प्राप्तमाहेन्द्रधन्वा।
अपरिमितशरौघै:
पूर्णतूणीरधीरो
लघुनिहतकपीन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥७॥
कनकविमलकान्त्या सीतयालिंगितांगों
मुनिमनुजवरेण्य: सर्ववागीशवन्ध:।
स्वजननिकरबन्धुर्लीलया
बद्धसेतु:
सुरमनुजकपीन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥८॥
यामुनाचार्यकृतं दिव्यं रामाष्टकमिदं शुभम्।
य: पठेत् प्रयतो भूत्वा स
श्रीरामान्तिकं व्रजेत्॥९॥
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हिन्दी अर्थ
श्री राम प्रेम अष्टकम् हिन्दी अर्थ सहित
श्यामाम्बुदाभमरविन्दविशालनेत्रं
बंधूकपुष्पसदृशाधरपाणिपादम्।
सीतासहायमुदितं धृतचापबाणं
रामं
नमामि शिरसा रमणीयवेषम्॥१॥
जो नील मेघ के सामान श्याम वर्ण के हैं, जिनके कमल के समान विशाल नेत्र हैं, जो बंधूक पुष्प के समान अरुण (लाल) ओष्ठ (ओंठ), हस्त और चरणों से शोभित हैं, जो सीताजी के साथ विराजमान एवं अभ्युदयशील हैं जिन्होंने धनुष-बाण को धारण किया है, जिनका वेष बड़ा ही सुन्दर है, सीताजी के सहित उन श्रीराम को मैं सिर से नमस्कार करता हूँ ॥१॥
पटुजलधरधीरध्वानमादाय चापं
पवनदमनमेकं बाणमाकृष्य तूणात्।
अभयवचनदायी
सानुज: सर्वतो मे
रणहतदनुजेन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥२॥
जो प्रौढ़ मेघ के समान धीर – गंभीर, टंकार ध्वनि करने वाले धनुष को धारण कर और अपने वेग से वायु का भी मान – मर्दन करने वाले एक बाण को तूणीर ( तरकस ) से खींचकर ‘ मत डरो ‘ ऐसा कहते हुए अपने आश्रितों को अभय वचन देने वाले हैं तथा जिन्होंने रण में दानवराज ( रावण ) को मारा है, लक्ष्मण के सहित वे श्रीरामचन्द्रजी ही मेरे सब प्रकार सहायक हैं ॥२॥
दशरथकुलदीपोऽमेयबाहुप्रतापो
दशवदनसकोप: क्षालिताशेषपाप:।
कृतसुररिपुतापो
नन्दितानेकभूपो
विगततिमिरपंको रामचन्द्र: सहाय:॥३॥
जो राजा दशरथ के कुल के दीपक ( प्रकाशक ) हैं जिनके बाहुबल का प्रताप मापा नहीं जा सकता, जो रावण के ऊपर कोप करने वाले, समस्त पाप को दूर करने वाले, असुरों को ताप देने वाले और अनेक राजाओं को आनंद प्रदान करने वाले हैं, अज्ञान और पाप से रहित वे श्रीरामचन्द्र जी ही मेरे सहयक हैं ॥३॥
कुवलयदलनील: कामितार्थप्रदो मे
कृतमुनिजनरक्षो रक्षसामेकहन्ता।
अपह्रतदुरितोऽसौ
नाममात्रेण
पुंसामखिलसुरन्रपेन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥४॥
जो कमल पत्र के सामान श्याम वर्ण, मेरी इष्ट वस्तुओं के दाता, मुनिजाओं की रक्षा करने वाले और राक्षसों को एकमात्र मारने वाले हैं, जो ( अपने ) राम – नाम के उच्चारण मात्रा से ही मनुष्यों के पापों का नाश करने वाले हैं, समस्त देवताओं और राजाओं के स्वामी वे श्रीरामचन्द्र जी ही मेरे सहायक हैं ॥४॥
असुरकुलकृशानुर्मानसाम्भोजभानु:
सुरनरनिकराणामग्रणीर्मे रघूणाम्।
अगणितगुणसीमा
नीलमेघौघधामा
शमदमितमुनीन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥५॥
जो असुरकुल ( को भस्म करने वाले ) के लिए अग्नि हैं, देवता और मानुष के समूहों के ह्रदय – कमल को विकसित करने के लिए सूर्य हैं, असंख्य गुणों की सीमा हैं, नील मेघ मण्डली के समान जिनका श्याम शरीर है और जो शम में मुनिश्वरों को भी जीतने वाले हैं, वे रघुकुल के अग्रणी श्रीरामचन्द्र जी ही मेरे सहायक हैं ॥५॥
कुशिकतनययागं रक्षिता लक्ष्मणाढय:
पवनशरनिकायक्षिप्तमारीचमाय:।
विदलितहरचापो
मेदिनीनन्दनाया
नयनकुमुदचन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥६॥
जिन्होंने लक्षमण को साथ लेकर विश्वामित्र के यज्ञ की रक्षा की है और वायुवेग वाले बाणों के समूह से मारीच निशाचर की माया का नाश किया है, जो शिव जी के धनुष का भंजन करने वाले और पृथ्वी की पुत्री की सीता के नयन कुमुद को विकसित करने के लिए चन्द्रमा के समान हैं, वे श्रीरामचन्द्र ही मेरे सहायक हैं ॥६॥
पवनतनयहस्तन्यस्तपादाम्बुजात्मा
कलशभववचोभि: प्राप्तमाहेन्द्रधन्वा।
अपरिमितशरौघै:
पूर्णतूणीरधीरो
लघुनिहतकपीन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥७॥
जो हनुमान जी के हाथों पर अपने चरण कमलों को रखे हैं, जिन्होंने अगस्त्य ऋषि के कहने से इंद्रधनुष को ग्रहण किया, जिनका तूणीर ( तरकस ) असंख्य बाणों से परिपूर्ण है, जो रणधीर हैं और जिन्होंने अति शीघ्रता से वानरराज बाली को मार गिराया, वे श्रीरामचन्द्र जी ही मेरे सहायक हैं ॥७॥
कनकविमलकान्त्या सीतयालिंगितांगों
मुनिमनुजवरेण्य: सर्ववागीशवन्ध:।
स्वजननिकरबन्धुर्लीलया
बद्धसेतु:
सुरमनुजकपीन्द्रो रामचन्द्र: सहाय:॥८॥
जो सुवर्ण के समान निर्मल और गौर कान्ति वाली सीता के संपर्क में रहते हैं, ऋषियों और मनुष्यों ने भी जिन्हें श्रेष्ठ और आदरणीय माना है, जो सम्पूर्ण वागीश्वरों के वंदनीय तथा अपने भक्त समुदाय की बंधु के समान रक्षा करने वाले हैं, जिन्होंने लीला से ही समुद्र पर पल बाँध दिया था, वे देवता, मनुष्य तथा वानरों के स्वामी श्रीरामचन्द्र जी ही मेरे सहायक हैं ॥८॥
यामुनाचार्यकृतं दिव्यं रामाष्टकमिदं शुभम्।
य: पठेत् प्रयतो भूत्वा स
श्रीरामान्तिकं व्रजेत्॥९॥
जो पुरुष यामुनाचार्य द्वारा रचित इस दिव्य तथा कल्याणदायक श्रीरामप्रेमाष्टक स्तोत्र का शुद्ध भाव से पाठ करता है, वह श्रीरामचन्द्र जी के सन्निकट निवास प्राप्त करता है ॥९॥