श्री गौरीश अष्टकम अर्थ सहित (Shri Gaurish Ashtakam)

॥ श्री गौरीशाष्टकम ॥
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते।
जलभवदुस्तरजलधिसुतरणंध्येयं
चित्ते शिवहरचरणम्।
अन्योपायं न हि न हि सत्यंगेयं शङ्कर शङ्कर
नित्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते ॥१॥
दारापत्यं क्षेत्रं वित्तंदेहं गेहं सर्वमनित्यम्।
इति परिभावय
सर्वमसारंगर्भविकृत्या स्वप्नविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते
॥२॥
मलवैचित्ये पुनरावृत्ति:पुनरपि जननीजठरोत्पत्ति:।
पुनरप्याशाकुलितं जठरं
किंनहि मुञ्चसि कथयेश्चित्तम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते
॥३॥
मायाकल्पितमैन्द्रं जालं नहि तत्सत्यं दृष्टिविकारम्।
ज्ञाते तत्त्वे
सर्वमसारं माकुरु मा कुरु विषयविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज
मन्दमते ॥४॥
रज्जौ सर्पभ्रमणा-रोपस्तद्वद्ब्रह्मणि जगदारोप:।
मिथ्यामायामोहविकारंमनसि
विचारय बारम्बारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते ॥५॥
अध्वरकोटीगङ्गागमनं कुरुतेयोगं चेन्द्रियदमनम्।
ज्ञानविहीन: सर्वमतेन नभवति
मुक्तो जन्मशतेन।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते ॥६॥
सोऽहं हंसो ब्रह्मैवाहंशुद्धानन्दस्तत्त्वपरोऽहम्।
अद्वैतोऽहं
सङ्गविहीनेचेन्द्रिय आत्मनि निखिले लीने।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज
मन्दमते ॥७॥
शङ्करकिंङ्कर मा कुरु चिन्तांचिंतामणिना विरचितमेतत्।
य: सद्भक्त्या पठति हि
नित्यंब्रह्मणि लीनो भवति हि सत्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते
॥८॥
॥ इति श्रीचिन्तामणिविरचितं गौरीशाष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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हिन्दी अर्थ
श्री गौरीश अष्टकम हिन्दी अर्थ सहित
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते।
जलभवदुस्तरजलधिसुतरणंध्येयं
चित्ते शिवहरचरणम्।
अन्योपायं न हि न हि सत्यंगेयं शङ्कर शङ्कर
नित्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते ॥१॥
हे मंदबुद्धि वाले! तू सदा गौरीश (भगवानशंकर) का भजन कर। संसार रूप दुस्तर सागर से पार लगाने वाले, भगवान शिव के ही चरण का ध्यान कर, संसार से उद्धार पाने का दूसरा कोई उपाय ही नहीं है, यह सत्य जान, सदा शंकर के नाम का ही गान किया कर। हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।
दारापत्यं क्षेत्रं वित्तंदेहं गेहं सर्वमनित्यम्।
इति परिभावय
सर्वमसारंगर्भविकृत्या स्वप्नविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज
मन्दमते ॥२॥
स्त्री, संतान, क्षेत्र, धन, शरीर और गृह - ये सब अनित्य हैं, गर भविकार के परिणाम भूत इस संसार को सारहीन तथा स्वप्नवत असत्य समझकर सबकी उपेक्षा कर दे। हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।
मलवैचित्ये पुनरावृत्ति:पुनरपि जननीजठरोत्पत्ति:।
पुनरप्याशाकुलितं जठरं
किंनहि मुञ्चसि कथयेश्चित्तम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते
॥३॥
मलभूत संसार के रूप पर मोहित होने से पुनः संसार में लौटना पड़ता है, फिर माता के गर्भ से उत्पत्ति होती है, अतः पुनः आशा से व्याकुल हुये अपने चित्त से तू कह दे कि रे चित्त! क्यों नहीं इस पेट की चिंता को छोडता है? हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।
मायाकल्पितमैन्द्रं जालं नहि तत्सत्यं दृष्टिविकारम्।
ज्ञाते तत्त्वे
सर्वमसारं माकुरु मा कुरु विषयविचारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज
मन्दमते ॥४॥
अरे, यह सारा प्रपंच माया से कल्पित इंद्रजाल है, इसका विकार प्रत्यक्ष देखा गया है, इसे कदापि सत्य ना जान, तत्वज्ञान हो जाने पर सब कुछ असार ही ठहरता है, इसलिए विषयोपभोग का विचार कभी न कर। हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।
रज्जौ सर्पभ्रमणा-रोपस्तद्वद्ब्रह्मणि जगदारोप:।
मिथ्यामायामोहविकारंमनसि
विचारय बारम्बारम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते ॥५॥
जैसे रज्जुमें भ्रम से सर्प का आरोप होता है, उसी प्रकार शुद्ध ब्रह्म में जगत का आरोप मात्र है, यह माया मोह का विकार असत्य है, इस बात को तू बारंबार मन में विचार। हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।
अध्वरकोटीगङ्गागमनं कुरुतेयोगं चेन्द्रियदमनम्।
ज्ञानविहीन: सर्वमतेन
नभवति मुक्तो जन्मशतेन।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज मन्दमते ॥६॥
लोग करोंदों यज्ञ करते हैं, स्नानार्थ गंगा जी जाते हैं, इंद्रियों को दमन करने वाला योग करते हैं, परंतु यह सबका सिद्धान्तमत है कि ज्ञानहीन जीव सैकड़ों जन्म में भी मुक्त नहीं हो सकता, इसलिए हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।
सोऽहं हंसो ब्रह्मैवाहंशुद्धानन्दस्तत्त्वपरोऽहम्।
अद्वैतोऽहं
सङ्गविहीनेचेन्द्रिय आत्मनि निखिले लीने।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज
मन्दमते ॥७॥
जब सम्पूर्ण इंद्रियाँ विषयों से निवृत्त होकर आत्मा में लीन हो जाती हैं उस समय ऐसा भान होने लगता है कि मैं ही वह परमात्मा हूँ, मैं शुद्ध ब्रह्म ही हूँ तथा इन पंचभूतों से पृथक शुद्ध आनंदस्वरूप हूँ। हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।
शङ्करकिंङ्कर मा कुरु चिन्तांचिंतामणिना विरचितमेतत्।
य: सद्भक्त्या पठति
हि नित्यंब्रह्मणि लीनो भवति हि सत्यम्।
भज गौरीशं भज गौरीशंगौरीशं भज
मन्दमते ॥८॥
हे शंकर के सेवक, चिंता मत करो; यह ग्रंथ चिंतामणि (एक अमूल्य रत्न) से निर्मित है। जो व्यक्ति इस गौरीशाष्टक स्तोत्र का शुद्ध भक्ति से नित्य पाठ करता है, वह ब्रह्म में लीन हो जाता है, यह सत्य बात है; इसलिए हे मन्दमते! सदा गौरीपति भगवान शिव को भज।