नवग्रह स्तोत्रम अर्थ सहित - जपाकुसुम संकाशं (Navagraha Stotram - Japakusum Sankasham)

सनातन धर्म में नवग्रहों का विशेष स्थान है, क्योंकि ये मानव जीवन के हर पहलू - जन्म, शिक्षा, विवाह, स्वास्थ्य, करियर, और आर्थिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डालते हैं। यदि ग्रहों की दशा अशुभ हो, तो जीवन में अनेक बाधाएं और कष्ट आ सकते हैं। ऐसे में ऋषि व्यास द्वारा रचित नवग्रह स्तोत्र एक शक्तिशाली उपाय माना गया है। इस स्तोत्र में नौ ग्रहों के लिए नौ मंत्र शामिल हैं, जिनका नियमित जाप करने से व्यक्ति को सुख-शांति, समृद्धि, यश और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
नवग्रह स्तोत्रम
रवि: जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं
प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥१॥
चंद्र: दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम्।
नमामि शशिनं सोमं
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥२॥
मंगळ: धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं
मङ्गलं प्रणमाम्यहम् ॥३॥
बुध: प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं
सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् ॥४॥
गुरु: देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं
तं नमामि बृहस्पतिं ॥५॥
शुक्र: हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं
भार्गवं प्रणमाम्यहम्॥६॥
शनि: नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसंभूतं तं
नमामि शनैश्चरम् ॥७॥
राहू: अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसंभूतं
तं राहुं प्रणमाम्यहम् ॥८॥
केतु: पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं
केतुं प्रणमाम्यहम् ॥९॥
फलश्रुति
इति व्यासमुखोद्गीतं यः पठेत्सुसमाहितः।
दिवा वा
यदि वा रात्रौ विघ्नशान्तिर्भविष्यति ॥१०॥
नरनारीनृपाणां च भवेद्दुःस्वप्ननाशनम्।
ऐश्वर्यमतुलं तेषामारोग्यं
पुष्टिवर्धनम्॥
ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुद्भवाः।
ताः सर्वाः प्रशमं यान्ति व्यासो
ब्रूते न संशयः॥
॥ इति श्रीव्यासविरचितं नवग्रहस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
नवग्रह स्तोत्रम के अन्य वीडियो
हिन्दी अर्थ
नवग्रह स्तोत्रम हिन्दी अर्थ सहित
जपाकुसुमसंकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि
दिवाकरम् ॥१॥
हे सूर्य देव जपा के फूल की तरह आपकी कान्ति है, कश्यप से आप उत्पन्न हुए हैं, अन्धकार आपका शत्रु है, आप सब पापों को नष्ट कर देते हैं, आपको मैं प्रणाम करता हूं।
दधिशङ्खतुषाराभं क्षीरोदार्णवसंभवम्।
नमामि शशिनं सोमं
शम्भोर्मुकुटभूषणम् ॥२॥
हे चंद्र देव दही, शंख व हिम के समान आपकी दीप्ति है, आपकी उत्पत्ति क्षीर-समुद्र से है, आप हमेशा शिवजी के मुकुट पर अलंकार की तरह विराजमान रहते हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
धरणीगर्भसंभूतं विद्युत्कान्तिसमप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं तं मङ्गलं
प्रणमाम्यहम् ॥३॥
मंगल देव आपकी उत्पत्ति पृथ्वी के उदर से हुई है, विद्युत्पुंज के समान आपकी प्रभा है, आप अपने हाथों में शक्ति धारण किये रहते हैं, आपको मैं प्रणाम करता हूं।
प्रियङ्गुकलिकाश्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधम्।
सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं
प्रणमाम्यहम् ॥४॥
हे बुध देव प्रियंगु की कली की तरह आपका श्याम वर्ण है, आपके रूप की कोई उपमा नहीं है। उन सौम्य और गुणों से युक्त बुध को मैं प्रणाम करता हूं।
देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि
बृहस्पतिं ॥५॥
हे बृहस्पति देव आप देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं, कंचन के समान आपकी प्रभा है, जो बुद्धि के अखण्ड भण्डार और तीनों लोकों के प्रभु हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
हिमकुन्दमृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम्।
सर्वशास्त्रप्रवक्तारं भार्गवं
प्रणमाम्यहम्॥६॥
हे शुक्र देव तुषार, कुन्द और मृणाल के समान आपकी आभा है, आप ज्ञान के भंडार हैं, दैत्यों के परम गुरु हैं, आप सब शास्त्रों के अद्वितीय वक्ता हैं। मैं आपको प्रणाम करता हूं।
नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसंभूतं तं नमामि
शनैश्चरम् ॥७॥
हे शनि देव नीले अंजन (स्याही) के समान आपकी दीप्ति है, आप सूर्य भगवान् के पुत्र और यमराज के बड़े भाई हैं, सूर्य की छाया से आपकी उत्पत्ति हुई है, मैं आपको प्रणाम करता हूं।
अर्धकायं महावीर्यं चन्द्रादित्यविमर्दनम्।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं
प्रणमाम्यहम् ॥८॥
हे राहु देव आप आधे शरीर वाले हैं, सिंहिका के गर्भ से आपकी उत्पत्ति हुई है, आपको मैं प्रणाम करता हूं।
पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रहमस्तकम्।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं
प्रणमाम्यहम् ॥९॥
हे केतु देव पलाश के फूल की तरह आपकी लाल दीप्ति है, आप समस्त तारकाओं में श्रेष्ठ हैं, जो स्वयं रौद्र रूप और रौद्रात्मक हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूं।