श्री बगला अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् (Shri Bagla Ashtottarashatnam Stotram)
श्रीबगला-अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्
ध्यानम
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं
हेमाभाङ्गरुचिं
शशाङ्कमुकुटां सच्चम्पकस्त्रग्युताम्।
हस्तैर्मुद्गरपाशवज्ररसनाः
सम्बिभ्रतीं भूषणैः
व्याप्ताङ्गीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं
चिन्तयेत्॥ *
विनियोग
ॐ अस्य श्रीपीताम्बर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिरनुष्टुप्छन्दः श्रीपीताम्बरी देवता श्रीपीताम्बरीप्रीतये जपे विनियोगः।
नारद उवाच
भगवन् देवदेवेश सृष्टिस्थितिलयात्मक।
शतमष्टोत्तरं
नाम्नां बगलाया वदाधुना॥१॥
श्रीभगवानुवाच
शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
पीताम्बर्या
महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम्॥२॥
यस्य प्रपठनात्सद्यो वादी मूको भवेत्क्षणात्।
रिपूणां स्तम्भनं याति सत्यं
सत्यं वदाम्यहम्॥३॥
स्तोत्र
ॐ बगला विष्णुवनिता विष्णुशङ्करभामिनी।
बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि॥१॥
महामत्स्या महाकूर्मा महावाराहरूपिणी।
नरसिंहप्रिया रम्या वामना बटुरूपिणी॥२॥
जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता।
कृष्णा कपर्दिनी कृत्या कलहा
कलकारिणी॥३॥
बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्धपाखण्डखण्डिनी।
कल्किरूपा कलिहरा
कलिदुर्गतिनाशिनी॥४॥
कोटिसूर्यप्रतीकाशा कोटिकन्दर्पमोहिनी।
केवला कठिना काली कला कैवल्यदायिनी॥५॥
केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता।
रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी
रुद्रदेवता॥६॥
नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेशप्रपूजिता।
नक्षत्रेशप्रिया नित्या
नक्षत्रपतिवन्दिता॥७॥
नागिनी नागजननी नागराजप्रवन्दिता।
नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा॥८॥
नगाधिराजतनया नगराजप्रपूजिता।
नवीननीरदा पीता श्यामा सौन्दर्यकारिणी॥९॥
रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी।
सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णभा
स्वर्गतिप्रदा॥१०॥
रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी।
भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनी
शुभा॥११॥
रागद्वेषकरी रात्री रौरवध्वंसकारिणी।
यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा
सिद्धिरूपिणी॥१२॥
लङ्कापतिध्वंसकरी लङ्केशरिपुवन्दिता।
लङ्कानाथकुलहरा महारावणहारिणी॥१३॥
देवदानवसिद्धौघपूजिता परमेश्वरी।
पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी॥१४॥
वरदा वरदाराध्या वरदानपरायणा।
वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषणभूषिता॥१५॥
वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना।
बलदा पीतवसना पीतभूषणभूषिता॥१६॥
पीतपुष्पप्रिया पीतहारा पीतस्वरूपिणी।
इति ते कथितं विप्र नाम्नामष्टोत्तरं
शतम्॥१७॥
यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणुयाद्वा समाहितः।
तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति
नैवात्र संशयः॥१८॥
प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः
पठेत्सुभक्त्या परिचिन्त्य पीताम्।
द्रुतं
भवेत्तस्य समस्तवृद्धि-
र्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः॥१९॥
हिन्दी अर्थ
श्री बगला अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित
ध्यान
सौवर्णासनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं
हेमाभाङ्गरुचिं
शशाङ्कमुकुटां सच्चम्पकस्त्रग्युताम्।
हस्तैर्मुद्गरपाशवज्ररसनाः
सम्बिभ्रतीं भूषणैः
व्याप्ताङ्गीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं
चिन्तयेत्॥ *
विनियोग
ॐ अस्य श्रीपीताम्बर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य सदाशिव ऋषिरनुष्टुप्छन्दः श्रीपीताम्बरी देवता श्रीपीताम्बरीप्रीतये जपे विनियोगः।
इस पीताम्बरा शतनाम स्तोत्र के सदाशिव ऋषि, अनुष्टुप्छन्द तथा देवता पीताम्बरा है। पीताम्बरा के प्रीत्यर्थ इसका विनियोग किया जा रहा है।
उक्त विनियोग मन्त्र को पढ़कर हाथ में लिये हुए जल को भूमि पर छोड़ देना चाहिए।
नारद उवाच
भगवन् देवदेवेश सृष्टिस्थितिलयात्मक।
शतमष्टोत्तरं
नाम्नां बगलाया वदाधुना॥१॥
नारदजी बोले - हे देवदेवेश भगवान्। सृष्टि - स्थिति तथा प्रलय के कारणभूत आप मुझे अष्टोतर शतनाम बगलामुखी स्तोत्रपाठ का ज्ञान प्रदान करें॥ १॥
श्रीभगवानुवाच
शृणु वत्स प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतम्।
पीताम्बर्या
महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम्॥२॥
यस्य प्रपठनात्सद्यो वादी मूको भवेत्क्षणात्।
रिपूणां स्तम्भनं याति सत्यं
सत्यं वदाम्यहम्॥३॥
श्री भगवान् ने कहा - हे वत्स! सुनो। मैं तुम्हें पीताम्बरा महादेवी का पापविनाशक
अष्टोतर शतनाम स्तोत्र बतलाता हूँ।
उस स्तोत्र के पाठ करने से मूक प्राणी
(गूँगा मनुष्य) की अवरुद्ध वाणी शीघ्र ही खुल जाती है तथा उसके शत्रुओं की गति भी
रुक जाती है। यह बात मैं तुम से नितान्त सत्य कहता हूँ॥ २ - ३॥
स्तोत्र
ॐ बगला विष्णुवनिता विष्णुशङ्करभामिनी।
बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि॥
१॥
महामत्स्या महाकूर्मा महावाराहरूपिणी।
नरसिंहप्रिया रम्या वामना बटुरूपिणी॥२॥
जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता।
कृष्णा कपर्दिनी कृत्या कलहा
कलकारिणी॥३॥
बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्धपाखण्डखण्डिनी।
कल्किरूपा कलिहरा
कलिदुर्गतिनाशिनी॥४॥
बगला, विष्णुवनिता, विष्णुशंकरभामिनी, बहुला, वेदमाता, महाविष्णु-प्रसू, महामत्स्या, महाकर्मा, महावाराहरुपिणी, नारसिहप्रिया, रम्या, वामना, वटरुपिणी, जागदग्न्यस्वरूपा, रामा, रामप्रपूजिता, कृष्णा, कपर्दिनि, कृत्या, कलहा, कलहकारिणी, बुद्धिरुपा, बुद्धिभार्या, बौद्धपाखण्डखण्डिनी, कल्किरुपा, कलिहरा तथा कलिदुर्गतिनाशिनी ॥१ - ४॥
कोटिसूर्यप्रतीकाशा कोटिकन्दर्पमोहिनी।
केवला कठिना काली कला कैवल्यदायिनी॥५॥
केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता।
रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी
रुद्रदेवता॥६॥
नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेशप्रपूजिता।
नक्षत्रेशप्रिया नित्या
नक्षत्रपतिवन्दिता॥७॥
नागिनी नागजननी नागराजप्रवन्दिता।
नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा॥८॥
कोटिसूर्यप्रतिकाशा, कोटिकन्दर्पमोहिनी, केवला, कठिना, काली, कला, कैवल्यदायिनी, केशवी, केशवाराध्वा, किशोरी, केशवास्तुता, रुद्ररुपा, रुद्रमूर्ति, रुद्राणी, रुद्रदेवता, नक्षत्ररुपा, नक्षत्रा, नक्षत्रेशप्रपूजिता (चंद्रमा द्वारा पूजित), नक्षत्रेशप्रिया, नित्या, नक्षत्रपतिवंदिता, नागिनी, नागजननी, नागराजप्रवन्दिता, नागेश्वरी, नागकन्या, नागरी तथा नगात्मजा ॥५ - ८॥
नगाधिराजतनया नगराजप्रपूजिता।
नवीननीरदा पीता श्यामा सौन्दर्यकारिणी॥९॥
रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी।
सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णभा
स्वर्गतिप्रदा॥१०॥
रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी।
भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनी
शुभा॥११॥
रागद्वेषकरी रात्री रौरवध्वंसकारिणी।
यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा
सिद्धिरूपिणी॥१२॥
नगाधिराजतनया, नगराजप्रपूजिता, नवीना, निरदा, पीता, श्यामा, सौन्दर्यकारिणी, रक्ता, नीला,धना, शुभ्रा, श्वेता,सौभाग्यदायिनी, सुन्दरी, सौभगा, सौम्या,स्वर्णाभा, स्वगतिप्रदा, रिपुत्रासकरी, रेखा, शत्रुसंहारकारिणी, भामिनी, माया, स्तंभिनी, मोहिनी, शुभा, राग-द्वेषकरी, रात्री, रौरवध्वंसकारिणी, याक्षिणी, सिद्धनिवहा, सिद्धेशा तथा सिद्धिरुपिणी ॥९ - १२॥
लङ्कापतिध्वंसकरी लङ्केशरिपुवन्दिता।
लङ्कानाथकुलहरा महारावणहारिणी॥१३॥
देवदानवसिद्धौघपूजिता परमेश्वरी।
पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी॥१४॥
वरदा वरदाराध्या वरदानपरायणा।
वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषणभूषिता॥१५॥
वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना।
बलदा पीतवसना पीतभूषणभूषिता॥१६॥
लंकापतिध्वंसकरी, लंकेशरिपुवन्दिता, लंकनाथा, कुलहरा, महारावणहरिणी, देव-दानव-सिद्धौधपूजिता, परमेश्वरी, पराणुरुपा, परमा, परतन्त्रविनाशिनी, वरदा, वरदाराध्या, वरदानपरायणा, वरदेशप्रिया, वीरा, वीरभूषण-भूषिता, वसुदा, बहुदा, वाणी, ब्रह्मरुपा, वरानना, बलदा, पीतवसना तथा पीत-भूषण-भूषिता ॥१३ - १६॥
पीतपुष्पप्रिया पीतहारा पीतस्वरूपिणी।
इति ते कथितं विप्र नाम्नामष्टोत्तरं
शतम्॥ १७॥
यः पठेत्पाठयेद्वापि शृणुयाद्वा समाहितः।
तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति
नैवात्र संशयः॥ १८॥
पितपुष्पप्रिया,पीतहारा तथा पीतस्वरुपिणी। हे विप्र! मैंने तुम्हें पीताम्बरा का
अष्टोत्तरशतनाम बता दिया।
जो मनुष्य स्थिरचित्त से इसका पठन-पाठन करते या सुनते हैं उनके शत्रु शीघ्र ही
नष्ट हो जाते हैं। इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं करना चाहिए ॥१७-१८॥
प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः
पठेत्सुभक्त्या परिचिन्त्य पीताम्।
द्रुतं
भवेत्तस्य समस्तवृद्धि-
र्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः॥१९॥
जो व्यक्ति प्रातःकाल संयतचित्त होकर पीताम्बरा बगलामुखी का ध्यान करके भक्तिभाव से इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसकी बुद्धि तत्क्षण ही संयमित हो जाती है तथा उसके सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश हो जाता है॥१९॥